Hindi, asked by psaileela, 1 year ago

essays on swachata ka mahatva






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Answered by kvnmurty
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    स्वच्छता हमारे जीवन में एक महत्व पूर्ण  विषय और विचार है।  स्वच्छता और सफाई के बिना हम ठीक तरह जी नहीं सकते हैं।  हर दिन हमारे घरों में बहुत धूल गिरती है।  यह धूल सड़कों से उड़कर घरों में दफ्तरों में आ जाती है।  इस से हमारी शहद को हानि पहुंच सकता है। टी बी जैसे रोग पर्वावरण का प्रदूषण और धूल से हो सकते हैं । और कचरा  इधर उधर नहीं फेंकना चाहिये।

  
  अगर हम हमारे घर को सॉफ नहीं करते, और आसपास के जगहों को भी सॉफ नहीं रखते, तब, मच्छर और कीड़े वहां पर पैदा हो जायेंगे।  उन से हमें काफी नुकसान पहुंच सकता है ।  हम बीमार पड़  सकते हैं । तब तो हमारे बहुत सारे पैसे भी खर्च होंगे ।  बीमरी की तकालीफें   भी उठानी भी पड़ेंगी ।

  
  रास्ते में चलते वक्त अगर कुडे डिब्बों के पास से जाना होता है, तब हम जानते हैं कि क्या तकालीफ होता है।  सास लेना बहुत मुश्किल होता है।  बहुत लोग स्कूटर पर जाते वक्त नाक पर कपड़ा बांध लेते  हैं।

        अगर सड़कें , मार्केट सॉफ नहीं होते हैं, तो हम लोगों को बहुत खराब लगता है ।  हम वहां  नहीं जाना चाहते हैं ।
हम को हर दिन अच्छी तरह से नहा धो लेना चाहिये ।  इस से हम खुद स्वस्थ रहेंगे ।  कूड़ा सिर्फ कूड़े  वाले डिब्बे में या थैली में डाल कर, बाहर म्यूनिसिपॅलिटी के कूड़े के डिब्बे में फेंक देना चाहिये ।

     स्वच्छ और सॉफ होने और रहने से हमें सब लोग पसंद करेंगे ।  हमें अच्छे खयाल आयेंगे। हमारे दोस्त भी हमें देखकर पसंद करेंगे ।  यह इतनीसी बात है कि अगर विद्यालय में एक विद्यार्थी गंदे कपड़े पहने तो कोई भी उसके बगल में बैठना नहीं चाहता है।

      स्वच्छ रहने से हम अपनी और सब की भलाई  भी कर रहे हैं।   हमें स्वच्छता का महत्व जानकर  बिना  भूले  स्वच्छता की आदत डाल लेनी चाहिये।




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Answered by shrimoyamazing
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Answer:

Explanation:एक कहावत है ‘कुत्ता भी जब बैठता है तो पूंछ झाडक़र बैठता है।’ इसका अर्थ यह है कि जब कुत्ता किसी स्थान पर बैठता है तब सबसे पहले उसे पूंछ से साफ कर लेता है, अर्थात कुत्ता भी स्वच्छताप्रिय होता है। फिर मनुष्य को तो सफाई का ध्यान अवश्य रखना चाहिए। वास्तव में, स्वच्छता जीवन में अत्यंत आवश्यक है। प्रत्येक मनुष्य को चाहिए कि वह सदैव स्वच्छता से रहे। अंग्रेजी में एक कहावत है ‘सत्य के बाद स्वच्छता का स्थान है।’

सफाई दो प्रकार की होती है। बाह्य और आंतरिक। बाह्य सफाई से प्रयोजन शरीर, वस्त्र, निवास आदि की स्वच्छता से है। आंतरिक स्वच्छता से तात्पर्य मन और हदय की स्वच्छता से है।

इन दोनों में श्रेष्ठतर ‘आंतरिक’ स्वच्छता है। इसमें आचरण की शुद्धता जरूरी है। शुद्ध आचरण से मनुष्य का चेहरा तेजोमय होता है। सब लोग उसको आदर की दृष्टि से देखते हैं। उसके समक्ष प्रत्येक व्यक्ति स्वंय ही अपना मस्तक झुका लेता है। उसके प्रति लोगों में अत्यंत श्रद्धा होती है। बाह्य स्वच्छता में बालों की सफाई, नाखूनों की सफाई, कपड़ों की सफाई इत्यादि शामिल है। इसकी अवहेलना करके मनुष्य स्वच्छ नहीं रह सकता। इसकी उपेक्षा करने से बड़े दुष्परिणाम नजर आते हैं। मनुश्य रोगग्रस्त होकर नाना प्रकार के दुखों से पीडि़त रहता है। वह मनुष्य क्या कभी स्वस्थ रह सकता है, जो सर्वदा स्वच्छ जलवायु से वंचित रहता है? अत: यह स्पष्ट है कि स्वास्थ्य-रखा के लिए स्वच्छता अविार्य है। यह प्राय: सभी लोगों का अनुभव है कि जो मनुष्य गंदे रहते हैं, वे दुर्बल और रुज्ण होते हैं। जो मनुष्य स्वच्छ रहते हैं, वे हष्ट-पुष्ट और निरोग रहते हैं।

स्वास्थ्य के अतिरिक्त बाह्य सफाई से चित्त को प्रसन्नता भी मिलती है। जब कोई मनुष्य गंदे वस्त्र पहने रहता है तब उसका मन मलिन बना रहता है और उसमें आत्मविश्वास की कमी महसूस होती है, परंतु यदि वही मनुष्य स्वच्छ वस्त्र धारण कर लेता है तो उसमें एक प्रकार की स्फूर्ति और प्रसन्नता का संचरण हो जाता है। आपको यदि ऐसे स्थान पर छोड़ दिया जाए, जहां कूड़ा-करकट फैला हो, जहां मल-मूत्र पड़ा हो तो क्या आपका चित्त वहां प्रसन्न रहेगा? नहीं। क्यों? इसलिए कि आपको वहां दुख होगा, घृणा लगेगी।

बाह्य स्वच्छता से सौंदर्य में भी वृद्धि होती है। एक स्त्री जो फटे, मैले-कुचैले वस्त्र धारण किए हुए है, उसकी ओर कोई देखता तक नहीं। परंतु यदि वही स्त्री स्वच्छ वस्त्र धारण कर लेती है तो सुंदर दिखाई देने लगती है। धूल-धूसरित बनने की अपेक्षा स्वच्छ बालक सुंदर तथा प्रिय लगते हैं।

मनुष्य मात्र में स्वच्छता का विचार उ पन्न करने के लिए शिक्षा का प्रचार करना अनिवार्य है। शिक्ष्ज्ञा पाने से व्यक्ति स्वत: स्वच्छता की ओर प्रवृत हो जाता है। ध्यान रहे, बाह्य स्वच्छता का प्रभाव आतंरिक स्वच्छता पर भी पड़ता है। इसके अतिरिक्त आतंरिक स्वच्छता सत्संगति से मिलतीहै। सचमुच यह दुर्भाज्य ही है कि हममें से अधिकांश व्यक्ति स्वच्छता पर ध्यान नहीं दे पाते। स्वच्छता उत्तम स्वास्थ्य का मूल है।

-Shrimoy Mohanty

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