esssay on jeevan me guru ka mahatva
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गुरु बहुत ही सीधा सादा होता है | गुरु भले ही लंगड़ा लूला या गरीब है लेकिन गुरु गुरु होता है | वह अपने शिष्य के प्रति कपट व्यवहार नहीं करता है | वह अपने शिष्य को पारंगत कर देना चाहता है | अपने शिष्य को बढ़ते हुये देखना चाहता है | अपने शिष्य का काँट छाँट करता है | उसके प्रत्येक कमी को निकालता है | उसे ठोंक ठोंककर कुम्हार के घड़े की तरह सुंदर बनाता है | अपने शिष्य को संपूर्ण बनाने में समस्त ज्ञान उसके सामने उड़ेल देता है | यही तो सच्चे गुरू का गुणधर्म होता है | कपटी गुरू का गुण किसी काम का नहीं होता है | वह पूरा ज्ञान अपने शिष्य को नहीं देता है | वह ज्ञान न उसके लिये ही लाभदायक होता है न दूसरे के ही जीवन को संवार सकता है | गुरू चुनते समय हमें सच्चे गुरू की तलाश करनी चाहिये | कपटी गुरू से हम सच्चे हुनर को नहीं प्राप्त कर सकते हैं |
गुरु को भी कपटी नहीं होना चाहिये यदि शिष्य पूरी तरह से समर्पित रहता है तो उसे सहज होकर जो विद्या ज्ञान लेना चाहता है | उसे देने में पूर्ण तल्लीन हो जाना चाहिये तभी गुरू शिष्य की परंपरा को जिन्दा रखता जा सकता है | गूरू शिष्य की परंपरा सदियों से चली आ रही है | इस शुध्द परंपरा का पालन करने वाला ही सच्चा गुरू व शिष्य कहलायेगा, तभी जीवन सार्थक हो सकता है, तभी जीवन एक गौरवशाली बन सकता है | गूरू को अपनी मर्यादा पालन करते रहना चाहिये और शिष्य गुरू के प्रति समर्पित होकर शिक्षा लेता है तो वह एक महान लक्ष्य को हासिल कर लेता है | कोई बाधायें उन्हें नहीं रोक सकती है |
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जीवन में गुरु का महत्त्व
[सेटिंग: (1) गुरु की परिभाषा (2) अध्यात्मिक क्षेत्र में गुरु की महिमा (3) पहले गुरु माता (4) प्रत्येक क्षेत्र में गुरु की आवश्यकता (5) कुछ ऐतिहासिक उदाहरण (6) गुरु का ऊँचा स्थान ।।
जो अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाए अर्थात् ज्ञान दूर कर हमें ज्ञान प्रदान करे वही गुरु है। गुरु की यह परिभाषा जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में लागू होती है। अध्यात्मिक क्षेत्र में गुरु की बड़ी महिमा है। गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश से भी अधिक महत्त्व दिया गया है। संत कबीर का यह दोहा प्रसिद्ध है----
गुरु गोविंद दोऊ स्टैंड, काके लागूं पाँय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय ।।
मीराँबाई भी कहती हैं 'मैंने ईश्वररूपी रत्न प्राप्त कर लिया मेरी सद्गुरु ने मुझ पर कृपा कर यह महान रत्न मुझे दिया है। इसी तरह लगभग सभी संतों ने गुरु की महिमा बताई है।
बालक की पहली गुरु उसकी माता होती है। माँ की गोद में बैठकर बच्चे बोलना सीखता है। उचित - अनुचित और अच्छे - बुरे का साधारण ज्ञान उसे माँ से ही प्राप्त होता है। बालक पाठशाला जाता है। वहाँ उसे विद्या गुरु या शिक्षा गुरु मिलते हैं। वर्षों तक लड़के अपने शिक्षा गुरुओं से विविध प्रकार का ज्ञान प्राप्त करता है। आगे चलकर व्यापार, उद्योग या अन्य प्रकार का ज्ञान उसे जिन अनुभवी लोगों से प्राप्त होता है, वे ही उसके गुरु कहलाते हैं।
गुरु चाणक्य ने ही अपनी विलुप्त शिक्षा देकर चंद्रगुप्त मौर्य को मगध - सम्राट बनाया था। महाभारत के युद्ध में विजयी होने वाले पंडवों को अस्त्र - शस्त्र - विद्या में अनुकूल गुरु द्रोणाचार्य ने ही बनाया था। ज्ञान के बिना जीवन निरर्थक है और ज्ञान केवल गुरु से ही मिलता है। इसलिए जीवन में गुरु का स्थान बहुत ऊँचा है। भारत में गुरु का महत्त्व सदैव रहा है और रहेगा।