एतत्सूक्ष्मपटस्येति' श्लोकस्य स्वमातृभाषया अनुवादः कार्य:
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एतत्सूक्ष्मपटस्येति' श्लोकस्य स्वमातृभाषया अनुवादः :-
जुलाहे द्वारा बनाए गए वस्त्रों का सौंदर्य देखकर विदेशी के मन में ईर्ष्या उत्पन्न होती है और सोचता है कि हमारे देश के कपड़ों का व्यापार तो खत्म हो जाएगा। अतः मैं इस महीन वस्त्र के निर्माण के तौर-तरीकों को समाप्त कर सकता हूँ। इसके निर्माताओं को सजा देकर छोड़ दूंगा।
भाव यह है कि अंग्रेज भारतीय हुनरमंद लोगों का हुनर और अन्य अच्छी बातों को नष्ट करना चाहते थे।
अतिरिक्त जानकारी :
प्रस्तुत प्रश्न पाठ वस्त्रविक्रयः ( कपड़ा बेचना) से लिया गया है। इस पाठ का संकलन “भारतविजयनाटकम्" के पहले अंक से किया गया है। इसके लेखक महामहोपाध्याय पं. मथुराप्रसाद दीक्षित हैं।
आग से जली शाहजहाँ की बेटी का इलाज करने के बाद विदेशी (अंग्रेज) भारत के सम्राट शाहजहाँ से पं. बंगाल में रहने के लिए जमीन और कपड़े का व्यापार करने के लिए सर्टिफिकेट प्राप्त कर लेता है। भारत के जुलाहे स्वनिर्मित कपड़ों को बेचने हेतु बाजार जाते हैं। बाजार में व्यापारियों के साथ उनकी बातचीत होती है। उसी समय विदेशी गौरांग का प्रवेश होता है और जिसके हाथ में राजमुद्रांकित प्रमाण-पत्र है। वह अपना प्रमाण-पत्र दिखाकर बहुत कम कीमत पर कपड़े खरीद लेता है और जुलाहों को बेंत से मारता है। इस नाटकांश का मूल यही है। विदेशियों द्वारा किये जाने वाले शोषण को उजागर किया गया है।
इस पाठ से संबंधित कुछ और प्रश्न :
सप्रसङ्गं व्याख्यायन्ताम्
(क) यष्मत्कटम्बरक्षायै ....................... जानीहि व्रजाधुना।
(ख) अनिर्वचनीयमेतत्पटयोः सौन्दर्यम्। अतिसूक्ष्मतरोऽयं पटः। पश्य, एतस्य
पञ्चषैः पटलैः परिवेष्टितमप्यपटमेव प्रतीयतेऽङ्गम्।
(ग) न वयमयोग्यमूल्यत्वात् पटं निर्मामः।
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अधोलिखितेषु पदेषु धातुं प्रत्ययं च पृथक्कृत्य लिखत
विक्रेतुम, अनिर्वचनीयम, विचिन्त्य, गत्वा, निबध्य, निर्माय, अभिलक्ष्या
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ตαɾk ตҽ αs α ճɾαíղlísԵ թlҽαsҽ