एधा की क्रियाशीलता पर वातावरण का क्या प्रभाव पड़ता हैं ?
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hiii
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Explanation:
एधा की क्रियाशीलता पर पर्यावरणीय कारकों का सीधा प्रभाव पड़ता है। जिन स्थानों की जलवायु में अधिक अन्तर पाया जाता है उन स्थानों पर एधा की सक्रियता वर्ष भर एक जैसी नहीं होती है, विशेषकर शीतऋतु व बसंत ऋतु में बने हुए काष्ठ में बहुत अन्तर होता है। बसंत ऋतु में पौधे के सभी भागों की क्रियाशीलता बढ़ जाती है और अधिक मात्रा में जल इत्यादि ऊपर चढ़ाए जाते हैं। इस समय कोशिकाएँ तीव्रता से विभाजन करती हैं व जाइलम ऊतक का उत्पादन करती हैं जिससे बसंत काष्ठ या अग्रदारु (spring wood or early wood) बनती है।
इसमें वाहिकाओं की गुहा बड़ी होती है। शीत या शरद ऋतु में एधा की क्रियाशीलता कम हो जाती है, इससे जाइलम कम मात्रा में बनता है। वाहिकाओं की गुहा छोटी होती है तथा इस काष्ठ में वाहिनिकाओं और काष्ठ रेशों की अधिकता होती है। इस काष्ठ को शरद काष्ठ (autumn wood or late wood) कहते हैं। ये दोनों काष्ठ संकेन्द्री वलयों में रहकर वार्षिक वलय बनाती हैं।
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एधा की क्रियाशीलता पर पर्यावरणीय कारकों का सीधा प्रभाव पड़ता है। जिन स्थानों की जलवायु में अधिक अन्तर पाया जाता है उन स्थानों पर एधा की सक्रियता वर्ष भर एक जैसी नहीं होती है, विशेषकर शीतऋतु व बसंत ऋतु में बने हुए काष्ठ में बहुत अन्तर होता है। बसंत ऋतु में पौधे के सभी भागों की क्रियाशीलता बढ़ जाती है और अधिक मात्रा में जल इत्यादि ऊपर चढ़ाए जाते हैं। इस समय कोशिकाएँ तीव्रता से विभाजन करती हैं व जाइलम ऊतक का उत्पादन करती हैं जिससे बसंत काष्ठ या अग्रदारु (spring wood or early wood) बनती है।
इसमें वाहिकाओं की गुहा बड़ी होती है। शीत या शरद ऋतु में एधा की क्रियाशीलता कम हो जाती है, इससे जाइलम कम मात्रा में बनता है। वाहिकाओं की गुहा छोटी होती है तथा इस काष्ठ में वाहिनिकाओं और काष्ठ रेशों की अधिकता होती है। इस काष्ठ को शरद काष्ठ (autumn wood or late wood) कहते हैं। ये दोनों काष्ठ संकेन्द्री वलयों में रहकर वार्षिक वलय बनाती हैं।