Hindi, asked by rnrajpal2005, 4 months ago

एवरेस्ट मेरी शिखर यात्रा पाठ में आधार पर स्पष्ट कीजिए कि ला हाथों में पर्वतारोही दल में अपना योगदान कैसे दिया​

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Answered by payalgpawar15
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Answer:

एवरेस्ट अभियान दल 7 मार्च को दिल्ली से काठमांडू के लिए हवाई जहाज़ से चल दिया। एक मज़बूत अग्रिम दल बहुत पहले ही चला गया था जिससे कि वह हमारे ‘बेस कैम्प’ पहुँचने से पहले दुर्गम हिमपात के रास्ते को साफ कर सके। नमचे बाज़ार, शेरपालैंड का एक सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण नगरीय क्षेत्र है। अधिकांश शेरपा इसी स्थान तथा यहीं के आसपास के गाँवों के होते हैं। यह नमचे बाज़ार ही था, जहाँ से मैंने सर्वप्रथम एवरेस्ट को निहारा, जो नेपालियों में ‘सागरमाथा’ के नाम से प्रसिद्ध है। मुझे यह नाम अच्छा लगा। बचेंद्री पाल अपनी एवरेस्ट की चढ़ाई के सफर की बात करते हुए कहती हैं कि एवरेस्ट पर चढ़ाई करने वाला दल 7 मार्च को दिल्ली से हवाई जहाज़ से काठमांडू के लिए चल पड़ा था। उस दल से पहले ही एक मज़बूत दल बहुत पहले ही एवरेस्ट की चढ़ाई के लिए चला गया था जिससे कि वह बचेंद्री पाल वाले दल के ‘बेस कैम्प’ पहुँचने से पहले बर्फ के गिरने के कारण बने कठिन रास्ते को साफ कर सके। बचेंद्री पाल कहती हैं कि नमचे बाज़ार, शेरपालैंड का एक सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण नगरीय क्षेत्र है। अधिकांश शेरपा इसी स्थान तथा यहीं के आसपास के गाँवों के होते हैं। यह नमचे बाज़ार ही था, जहाँ से बचेंद्री पाल ने सर्वप्रथम एवरेस्ट को देखा था, जो नेपालियों में ‘सागरमाथा’ के नाम से प्रसिद्ध है। बचेंद्री पाल को एवरेस्ट का यह नाम अच्छा लगा था। एवरेस्ट की तरफ गौर से देखते हुए, मैंने एक भारी बर्फ का बड़ा फूल (प्लूम) देखा, जो पर्वत-शिखर पर लहराता एक ध्वज-सा लग रहा था। मुझे बताया गया कि यह दृश्य शिखर की ऊपरी सतह के आसपास 150 किलोमीटर अथवा इससे भी अधिक की गति से हवा चलने के कारण बनता था, क्योंकि तेज़ हवा से सूखा बर्फ पर्वत पर उड़ता रहता था। बर्फ का यह ध्वज 10 किलोमीटर या इससे भी लंबा हो सकता था। शिखर पर जानेवाले प्रत्येक व्यक्ति को दक्षिण-पूर्वी पहाड़ी पर इन तूफानों को झेलना पड़ता था, विशेषकर खराब मौसम में। यह मुझे डराने के लिए काफ़ी था, फिर भी मैं एवरेस्ट के प्रति विचित्र रूप से आकर्षित थी और इसकी कठिनतम चुनौतियों का सामना करना चाहती थी। बचेंद्री पाल कहती हैं कि जब वे एवरेस्ट की तरफ गौर से देख रही थी तब उन्होंने एक भारी बर्फ का बड़ा फूल (प्लूम) देखा, जो उस पर्वत-शिखर पर लहराता हुआ किसी एक ध्वज-सा लग रहा था। लोगों के द्वारा बचेंद्री पाल को बताया गया कि यह दृश्य शिखर की ऊपरी सतह के आसपास 150 किलोमीटर अथवा इससे भी अधिक की गति से हवा चलने के कारण बनता था, क्योंकि तेज़ हवा से सुखी हुई बर्फ पर्वत पर उड़ती रहती है। बर्फ का यह ध्वज 10 किलोमीटर या इससे भी लंबा हो सकता है। उन्हें यह भी बताया गया कि शिखर पर जानेवाले प्रत्येक व्यक्ति को दक्षिण-पूर्वी पहाड़ी पर इन तूफानों को झेलना पड़ता है, विशेषकर जब मौसम खराब होता है। बचेंद्री पाल कहती हैं कि यह सब बातें उन्हें डराने के लिए काफ़ी थी, फिर भी बचेंद्री पाल कहती हैं कि एवरेस्ट के प्रति वे विशेष रूप से मुग्ध थी और इसकी कठिन से भी कठिन चुनौतियों का सामना करना चाहती थी। जब हम 26 मार्च को पैरिच पहुँचे, हमें हिम-स्खलन के कारण हुई एक शेरपा कुली की मृत्यु का दुःखद समाचार मिला। खुंभु हिमपात पर जानेवाले अभियान-दल के रास्ते के बाईं तरफ़ सीधी पहाड़ी के धसकने से, ल्होत्से की ओर से एक बहुत बड़ी बर्फ की चट्टान नीचे खिसक आई थी। सोलह शेरपा कुलियों के दल में से एक की मृत्यु हो गई और चार घायल हो गए थे।इस समाचार के कारण अभियान दल के सदस्यों के चेहरों पर छाए अवसाद को देखकर हमारे नेता कर्नल खुल्लर ने स्पष्ट किया कि एवरेस्ट जैसे महान अभियान में खतरों को और कभी-कभी तो मृत्यु भी आदमी को सहज भाव से स्वीकार करनी चाहिए।

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