examine "Pride and Prejudice" as a domestic novel
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कौन बोला मुझसे न हो पायेगा?
कौन बोला? कौन बोला?
अपना time आएगा
उठ जा अपनी राख से
तू उड़ जा अब तलाश में
परवाज़ देख परवाने की
अासमां भी सर उठाएगा
आएगा, अपना time आएगा
मेरे जैसा शाणा लाला तुझे न मिल पायेगा
ये शब्दों का ज्वाला मेरी बेड़ियाँ पिघलायेगा
जितना तूने बोया है तू उतना ही तो खायेगा
ऐसा मेरा ख्वाब है जो डर को भी सताएगा
जिंदा मेरा ख्वाब अब कैसे तू दफानायेगा
अब हौसले से जीने दे
अब खौफ नहीं है सीने में
हर रास्ते को चीरेंगे
हम कामयाबी छीनेंगे
सब कुछ मिला पसीने से
मतलब बना अब जीने में
क्यूँ?
क्यूंकि अपना time आएगा
तू नंगा ही तो आया है
क्या घंटा लेकर जाएगा
अपना time आएगा
अपना time आएगा
अपना time आएगा
तू नंगा ही तो आया है
क्या घंटा लेकर जाएगा
अपना time आएगा
अपना time आएगा
अपना time आएगा
तू नंगा ही तो आया है
क्या घंटा लेकर...
किसी का हाथ नहीं था सर पर
यहाँ पर आया खुदकी मेहनत से मैं
जितनी ताकत किस्मत में नहीं
उतनी रहमत में है
फिर भी लड़का सहमत नहीं है
क्यूंकि हैरत नहीं है
जरुरत यहाँ मर्ज़ी की और जुर्रत की है
ताकत की है, आफत की, हिमाकत की, इबादत की
अदालत ये है चाहत की
मोहब्बत की, अमानत की
जीतने की अब आदत की
ये शोहरत की अब लालच नहीं है
तेरे भाई जैसा कोई hard'इच नहीं है
(Hard, hard, hard, hard, hard)
इस हरकत ने ही बरकत दी है
क्यूँ?
क्यूंकि अपना time आएगा
तू नंगा ही तो आया है
क्या घंटा लेकर जाएगा
अपना time आएगा
अपना time आएगा
अपना time आएगा
तू नंगा ही तो आया है
क्या घंटा लेकर जाएगा
अपना time आएगा
अपना time आएगा
अपना time आएगा
तू नंगा ही तो आया है
क्या घंटा लेकर जाएगा
कल नंगा ही तो आया था
क्या तू घंटा लेकर जाएगा
अपना time आएगा
अपना time आएगा
अपना time आएगा ना?
तू नंगा ही तो जाएगा ना?
Answer:
Explanation:
I don’t agree. Pride and Prejudice defies easy categorization, as “domestic novel” or anything else, for that matter. A “domestic novel” is defined by a few characteristics of plot and character. Briefly, these narratives center on a young girl, often an “exemplar“ of domestic or moral values, who, deprived in one way or another of her support, has to make her own way in the world and, over the course of the story, learns that she can be self sufficient. Pride and Prejudice stands apart in part because of its wit, but mostly because of the psychological complexity of its characters. Lizzy in no way is deficient in self confidence at the beginning of the novel; her ”prejudice” against Darcy is based on what she sees as his sense of superiority. In a way, it is Darcy, not Lizzy, who undergoes the biggest change in the novel; it is through his love for Lizzy that he comes to understand (and care) about how prideful he has seemed to others.
It is possible to map the characteristics of “domestic novels” onto the structure of Pride and Prejudice: the entailment of Longbourne presents a (distant) threat of homelessness; Lizzy does come into self knowledge about herself, and is able to defeat her adversary Lady Catherine and “win” her place in the world at Darcy’s side. But Lizzy is hardly an ”exemplar” of any particular value. None of the other characters can be said to supply the place of the typical foils for the heroines of domestic novels (none of the women are ”passive,” for example), and the some of the pictures of domestic life we have (Mr. and Mrs. Bennet, Charlotte and Mr. Collins) are more pragmatic—or comic—than idealized. In my view, Austen’s genius at rendering complex characters, and her delight in skewering social conventions, puts her work in a different class that “domestic novel”—probably its own class.