examples of Raudra ras
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Raudra Ras
रौद्र रस: रौद्र रस काव्य का एक रस है जिसमें स्थायी भाव' अथवा 'क्रोध' का भाव होता है। धार्मिक महत्व के आधार पर इसका वर्ण रक्त एवं देवता रुद्र है।
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इसका स्थायी भाव क्रोध होता है जब किसी एक पक्ष या व्यक्ति द्वारा दूसरे पक्ष या दुसरे व्यक्ति का अपमान करने अथवा अपने गुरुजन आदि कि निन्दा से जो क्रोध उत्पन्न होता है उसे रौद्र रस कहते हैं इसमें क्रोध के कारण मुख लाल हो जाना, दाँत पिसना, शास्त्र चलाना, भौहे चढ़ाना आदि के भाव उत्पन्न होते हैं।
काव्यगत रसों में रौद्र रस का महत्त्वपूर्ण स्थान है। भरत ने 'नाट्यशास्त्र' में श्रृंगार, रौद्र, वीर तथा वीभत्स, इन चार रसों को ही प्रधान माना है, अत: इन्हीं से अन्य रसों की उत्पत्ति बतायी है, यथा-तेषामुत्पत्तिहेतवच्क्षत्वारो रसाः श्रृंगारो रौद्रो वीरो वीभत्स इति' । रौद्र से करुण रस की उत्पत्ति बताते हुए भरत कहते हैं कि रौद्रस्यैव च यत्कर्म स शेय: करुणो रसः । रौद्र रस का कर्म ही करुण रस का जनक होता है,
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Answer:
रौद्र रस के उदाहरण | रौद्र रस के आसान उदाहरण
(1) अतिरस बोले बचन कठोर।
बेगि देखाउ मूढ़ नत आजू।
उलटउँ महि जहाँ लग तवराजू।।
(2) जो राउर अनुशासन पाऊँ।
कन्दुक इव ब्रह्माण्ड उठाऊँ।
काँचे घट जिमि डारिऊँ फोरी।
सकौं मेरु मूले इव तोरी।।
(3) श्री कृष्ण के सुन वचन अर्जुन क्रोध से जलने लगे
सब सील अपना भूलकर करताल युगल करने लगे
Explanation:
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