Hindi, asked by anjanakosh477, 10 months ago

explain it this is a poem in Hindi Kabir. I send photo please send me the meaning of this passage in Hindi​

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Answered by shailajavyas
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Answer:                 प्रस्तुत पद सूरदास जी द्वारा रचित हैं | इसके अंतर्गत ज्ञान की बातें सिखाने आये श्रीकृष्ण सखा उद्धवजी को गोपियाँ सराहना करते हुए व्यंग कस रही है | वे उद्धवजी के भाग्य की बड़ाई और स्वयं की विवशता का वर्णन कर रही है |

व्याखा : गोपियाँ कहती है “हे उद्धव तुम बहुत भाग्यवान हो | वस्तुत: तुम्हें ज्ञान होने के कारण तुम सतत श्रीकृष्ण के सानिध्य में रहकर भी उनकी प्रेम डोरी से अछूते /अलिप्त रहते हो | तदर्थ तुम हमारी भांति श्रीकृष्ण से अनुरक्त नहीं हुए |

                                जिस प्रकार कमल का पत्ता पानी में रहकर भी उसकी तरलता से आप्लावित नहीं होता अर्थात कमल के पत्ते की सतह पर पानी की बून्द नहीं ठहरती, वह जस का तस ही बना रहता है उसमें कहीं पानी का दाग या धब्बा भी नज़र नहीं आता है |"

                                         गोपियाँ कहती है "जिस प्रकार तेल की गागर को पानी में डालने पर पानी की बूँद का भी स्पर्श उसे नहीं होगा वह अछूती ही बनी रहेंगी |उद्धवजी आप भी ऐसे ही हो | यहाँ तक की आपने न तो कभी अपना पैर प्रीत रुपी नदी में डुबोया है और न ही किसीके रूप पराग पर आपकी दृष्टि आसक्त/मोहित हुईं | जबकि हम स्त्रियाँ भोली और नादान है अतएव श्रीकृष्ण के स्नेह से ऐसे लिप्त या चिपकी हुई है जैसे चीटियाँ गुड़ को चिपक जाती हैं | "

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