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Heya Mate ✌✌✌
Here's your answer ⚛⚛⚛
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कविता : साखी
कवि : कबीर
दोहा :
बिरह भुवंगम तन बसै, मंत्र न लागै कोइ।
राम बियोगी ना जिवै, जिवै तो बौरा होइ।।
आशय :
कबीरदास कहते हैं कि जिन व्यक्तियों के शरीर में परमात्मा (राम) का विरह (वियोग) रूपी साँप बस जाता है, उनके बचने की कोई आशा, कोई उपाय शेष नहीं रहता। वह राम के वियोग से जीवित नहीं रह पाता और यदि किसी कारण से वह जीवित रह भी जाता है, तो परमात्मा को पाने के लिए वह पागलों की भाँंति ही जीवन व्यतीत करता है। परमात्मा से मिलन ही इसका एकमात्र उपाय है।
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Hope it helps you ☯☯☯
Cheers ☺☺☺
Here's your answer ⚛⚛⚛
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कविता : साखी
कवि : कबीर
दोहा :
बिरह भुवंगम तन बसै, मंत्र न लागै कोइ।
राम बियोगी ना जिवै, जिवै तो बौरा होइ।।
आशय :
कबीरदास कहते हैं कि जिन व्यक्तियों के शरीर में परमात्मा (राम) का विरह (वियोग) रूपी साँप बस जाता है, उनके बचने की कोई आशा, कोई उपाय शेष नहीं रहता। वह राम के वियोग से जीवित नहीं रह पाता और यदि किसी कारण से वह जीवित रह भी जाता है, तो परमात्मा को पाने के लिए वह पागलों की भाँंति ही जीवन व्यतीत करता है। परमात्मा से मिलन ही इसका एकमात्र उपाय है।
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