Explain the role of AZAD HIND FAUJ in Hindi
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द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान रूस और जर्मनी में युद्ध छिड़ गया और सुदूर पूर्व में जापानी साम्राज्यवाद अपनी चरम सीमा पर पहुँच गया. 15 फरवरी, 1942 ई. को जापानियों ने सिंगापुर पर अधिकार कर लिया. इन परिस्थतियों के बीच 28 मार्च, 1942 ई. को रास बिहारी बोस ने टोक्यो में एक सम्मलेन को आहूत किया. इसमें यह निर्णय लिया गया कि भारतीय अफसरों के अधीन एक भारतीय राष्ट्रीय सेना (Indian National Army) संगठित की जाए. 23 जून, 1942 ई. को बर्मा, मलाया, थाईलैंड, हिन्दचीन, फिलीपिन्स, जापान, चीन, हांगकांग और इंडोनेशिया के प्रतिनिधियों का एक सम्मलेन रास बिहारी की अध्यक्षता में Bangkok में सम्पन्न हुआ.
इसी दौरान जापानियों ने उत्तरी मलाया में ब्रिटेन की सेना को हरा दिया. वहाँ पहले भारतीय बटालियन के कप्तान मोहन सिंह और उनके सैनिकों को आत्मसमर्पण करना पड़ा. जापानियों के सुझाव से वे भारत की स्वतंत्रता के लिए जापानियों के साथ सहयोग करने को तैयार हुए. सिंगापुर के 40,000 भारतीय युद्धबंदी मोहन सिंह को दे दिए गए. मोहन सिंह चाहते थे कि आजाद हिन्द फ़ौज की स्वतंत्र कार्रवाई के लिए उन्हें स्वतंत्र रखा जाए पर जापानी इसके लिए तैयार नहीं थे. एक बार इसी मामले को लेकर जापानियों ने मोहन सिंह को गिरफ्तार भी कर लिया था पर बाद में रिहा भी कर दिया गया था.
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द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सन 1942 में जापान की सहायता से टोकियो में रासबिहारी बोस ने भारत को अंग्रेजों के कब्जे से स्वतन्त्र कराने के लिये आजाद हिन्द फौज या इन्डियन नेशनल आर्मी (INA) नामक सशस्त्र सेना का संगठन किया। इस सेना के गठन में कैप्टन मोहन सिंह, रासबिहारी बोस एवं निरंजन सिंह गिल ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।