Explain the V.B.T and M.O.T. 8n hindi
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Explanation:
V.B.T को सर्वप्रथम हिटलर व लंदन ने तरंग यांत्रिकी के आधार पर समझाया।
पॉलिग तथा स्लेटर ने V.B.T में अनुनाद संकरण तथा दिशात्मक गुण को समझाया। अत: इसे HLPS सिद्धांत भी कहते है।
इसके मुख्य बिन्दु निम्न है –
1. सहसंयोजक बंध बनने में केवल बाह्यतम कोश में electron ही भाग लेते है।
2. प्रत्येक बंधित परमाणु की अपनी अलग पहचान होती है।
3. परमाणुओ के मध्य बंध बनने पर प्रयुक्त electron अपनी पहचान खो देते है।
4. बंध के electrons का दोनों परमाणुओं के मध्य आदान प्रदान होता रहता है जिससे बंध का स्थायित्व बढ़ जाता है।
V.B.T में H2 का बनना
H2 अणु के बनने में दोनों H परमाणु को एक दूसरे के समीप लाया जाता है जिससे उनके मध्य विभिन्न आकर्षण व प्रतिकर्षण बल कार्य करते है जिन्हे निम्न प्रकार प्रदर्शित करते है –
माना दोनों परमाणुओं जिनको हम HA तथा HB नाम देते है , ये दोनों परमाणु एक दूसरे से अन्नत दूरी पर है अर्थात उनके मध्य कोई पारस्परिक क्रिया प्रारम्भ होने लगती है।
माना परमाणु HA का तरंग फलन ΨA व परमाणु HB का तरंग फलन ΨB है। यह मानते हुए की electron1 HA से तथा electron2 HB से सम्बंधित है अर्थात H2 अणु की HA(1) , HB(2) अनुनादी संरचना के आधार पर तरंग फलन निम्न होगा – ΨI = ΨA (1).ΨB (2)
H2 अणु के बनने के पश्चात् यह कहना कठिन होता है की कौनसे परमाणु से सम्बंधित है अत: ऐसी स्थिति में H2 अणु की अन्य अनुनादी संरचना HA(2).HB(1) के लिए तरंग फलन निम्न होगा।
ΨII = ΨA (2).ΨB (1)
अत: H2 अणु के बनने पर तंत्र का तरंग फलन समीकरण 1 तथा समीकरण 2 के द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है एवं तंत्र का वास्तविक तरंग फलन इन दोनों तरंग फलनों के रेखीय संयोग द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।
Ψ = C1 ΨI + C2 ΨII
यहाँ C1 , C2 मिश्रण गुणांक है।
समीकरण 1 तथा समीकरण 2 से मान रखने पर
Ψ = C1 ΨI + C2 ΨII
Ψ = C1 ΨA (1).ΨB (2) + C2 ΨA (2).ΨB (1)
चूँकि प्रत्येक तरंग फलन को उसके मिश्रण गुणांक के वर्ग से मापा जाता है अत:
C12 = C22
अत: C1 = ± C2
अत: यदि C1 = +1 तो C2 = ±1
अत: हमें ऊपर वाला समीकरण निम्न प्रकार प्राप्त होता है –
Ψ+ = ΨA(1). ΨB(2) + ΨA(2). ΨB(1)
Ψ– = ΨA(1). ΨB(2) – ΨA(2). ΨB(1)
इस समीकरण में Ψ+ आकर्षण को दर्शाता है जिसमे स्थितिज ऊर्जा का मान न्यूनतम होता है। इस स्थिति में दोनों H परमाणुओं के मध्य electron विपरीत चक्रण वाले होते है , फलस्वरूप H परमाणुओं के मध्य σ बंध का निर्माण होता है।
Ψ– प्रतिकर्षण को दर्शाता है जिसमें स्थितिज उर्जा अधिकतम होती है। अत: बंध बनने की कोई सम्भावना नहीं होती।
वह अन्तरनाभिकीय दूरी जिस पर स्थितिज ऊर्जा का न्यूनतम मान होता है , बंध लम्बाई या साम्यवस्था दूरी कहलाती है।
V.B.T व MOT की तुलना
समानताएं :
1. दोनों ही सिद्धांत सहसंयोजक बंध के बनने व इसमें दिशात्मक गुणों की व्याख्या करते है।
2. दोनों सिद्धांतो के अनुसार अतिव्यापन करने वाले कक्षकों की सममिति व ऊर्जाओं के मान समान होते है।
3. दोनों सिद्धांतो के अनुसार electron आवेश घनत्व बंधित परमाणुओं के नाभिकों के मध्य स्थित होता है।
जैसे : कोई कण जो सीधे रेखा में गति कर रहा है तो उसकी स्थिति ज्ञात करने के लिए केवल एक निर्देशांक की आवश्यकता होती है अत: स्वतंत्रता की कोटि 1 होगी।
N परमाणु वाले अणुओं की स्वतंत्रता की कोटि का मान 3N होता है।
किसी अणु की कुल स्वतंत्रता की कोटि निम्न तीन गतियों का योग होती है –
3N = स्थानान्तरीय + कम्पन्न + घूर्णन
सभी अणुओं के लिए स्थानान्तरिय गति का मान सदैव तीन होता है।
रेखीय अणु जैसे कार्बन डाई ऑक्साइड आदि के लिए घूर्णन की स्वतंत्रता कोटि का मान 2 होता है।
अत: रेखीय अणुओं के लिए कंपन्न की स्वतंत्रता कोटि का मान
3N = 3 + कंपन्न + 2
कम्पन्न की स्वतंत्रता कोटि = 3N – 5
आरेखीय अणुओ के लिए घूर्णन की स्वतंत्रता कोटि का मान 3 होता है अत:
इनके लिए कम्पन्न की स्वतंत्रता कोटि = 3N – 6