explanation of all the पद by रैदास in hindi
Answers
▶ रैदास के पद:
◼पहला पद:
अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी।
प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी, जाकी अँग-अँग बास समानी।
प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा, जैसे चितवत चंद चकोरा।
प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती, जाकी जोति बरै दिन राती।
प्रभु जी, तुम मोती हम धागा, जैसे सोनहिं मिलत सुहागा।
प्रभु जी, तुम स्वामी हम दासा, ऐसी भक्ति करै रैदासा॥
अर्थ:
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि रैदास जी ने अपने भक्ति भाव का वर्णन किया है। उनके अनुसार जिस तरह प्रकृति में बहुत सारे चीज एक दूसरे से जुड़े रहते हैं। ठीक उसी तरह एक भक्त एम भगवान् भी एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। उन्होंने प्रथम पंकक्ति में ही राम नाम का गुण गान किया है। वे बोल रहे हैं कि अगर एक बार राम नाम रटने की लत लग जाए तो फिर वह कभी छूट नहीं सकती। उनके अनुसार एक भक्त एवं भगवन चन्दन की लकड़ी एवं पानी की तरह होते हैं। जब चन्दन की लकड़ी को पानी में डालकर छोड़ दिया जाता है तो उसकी सुगंध पानी में फ़ैल जाती है। ठीक उसी प्रकार भगवान् भी अपनी सुगंध भक्त के मन में छोड़ जाते हैं। जिसे सूंघकर एक भक्त सदा प्रभु भक्ति में लीन रहता है।
आगे वह कहते हैं कि जब बर्षा होने वाली रहती है और चारों तरह आकाश में बादल घिर जाते हैं तो जंगल में उपस्थित मोर अपने पंख फैलाकर नाचे बिना नहीं रह सकता। ठीक उसी प्रकार एक भक्त राम नाम लिये बिना नहीं रह सकता। रैदास जी आगे कहते हैं जैसे दीपक में बाती जलती रहती है ठीक उसी प्रकार एक भक्त भी प्रभु की भक्ति में जलकर सदा प्रज्वलित होता रहता है।
कवि के अनुसार अगर ईश्वर मोती सामान है तो भक्त एक धागे के सामान है जिसमे मोतियों की पिरोया जाता है अर्थात दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे हैं और इसी के लिए कवि ने एक भक्त से भगवान् के मिलान को सोने में सुहागा कहा है और अपनी भक्ति का वर्णन करते हुए रैदास जी स्वयं को एक दास और प्रभु को स्वामी कहते हैं।
◼दूसरा पद:
ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै।
गरीब निवाजु गुसईआ मेरा माथै छत्रु धरै।।
जाकी छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै।
नीचहु ऊच करै मेरा गोबिंदु काहू ते न डरै॥
नामदेव कबीरु तिलोचनु सधना सैनु तरै।
अर्थ:
कहि रविदासु सुनहु रे संतहु हरिजीउ ते सभै सरै॥प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने प्रभु की कृपा एवं महिमा का वर्णन किया है। उनके अनुसार इस सम्पूर्ण जगत में प्रभु से बड़ा कृपालु और कोई नहीं। वे गरीब एवं दिन- दुखियों को सामान भाव से देखने वाले हैं। वे छूत-अछूत में कोई भेद भाव नहीं करते। और इसी कारण वश कवि को यह लग रहा है की अछूत होने के बाद भी उनपर प्रभु ने असीम कृपा की है। प्रभु के इस कृपा की वजह से कवि को अपने माथे पर राजाओं जैसा छत्र महसूस हो रहा है।
कवि खुद को नीच एवं अभागा मानते हैं और उसके बाद भी प्रभु ने उनके ऊपर जो कृपा दिखाई है। कवि उससे फुले नहीं समा रहे हैं। प्रभि अपने भक्तों में भेद भाव नहीं करते हैं वे सदैव अपने भक्तों को समान दृस्टि से देखते हैं। वे किसी से नहीं डरते एवं अपने सभी भक्तों पर एक समान कृपा करते हैं। और प्रभु की इसी गुण के वजह से नामदेव, कबीर जैसे जुलाहे साधना जैसे कसाई, सैन जैसे नाइ एवं त्रिलोचन जैसे सामन्य वयक्तियों को इतनी ख्याति प्राप्त हुई। और प्रभु की कृपा से उन्होंने इस संसार रूपी सागर को पार कर लिया। और अपने अंतिम पंक्तियों में कवि संतो से कहते हैं की हरी कुछ भी कर सकते हैं।
Answer:
Chandan Ki Shubham Ang Ang Mein bus jaane ka kya Bhav hai