Hindi, asked by Keshav3752, 1 year ago

explanation of the poem dhool by sarveshwar dayal saxena

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Answered by MVB
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"जंगल का दर्द" काव्य-संग्रह में कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की चुनी हुई दो कविताएँ -

धूल - ( एक )

तुम धूल हो -
पैरों से रौंदी हुई धूल ।
बेचैन हवा के साथ उठो ,
आँधी बन
उनकी आँखों में पड़ो
जिनके पैरों के नीचे हो ।

ऐसी कोई जगह नहीं
जहाँ तुम पहुच न सको
ऐसा कोई नहीं
जो तुम्हे रोक ले ।
तुम धूल हो -
पैरों से रौंदी हुई धूल
धूल से मिल जाओ ।

धूल ( दो )

तुम धूल हो
ज़िंदगी की सीलन से
दीमक बनो

रातों-रात
सदियों से बंद
दीवारों की
खिड़कियाँ
दरवाजे
और रोशनदान चाल दो ।

तुम धूल हो
ज़िंदगी की सीलन से जनम लो
दीमक बनो, आगे बढो़।

एक बार रास्ता पहचान लेने पर
तुम्हें कोई खत्म नहीं कर सकता ।
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