Hindi, asked by dikshu19, 1 year ago

extra questions of lhasa ki or

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Answered by yuvrajpardhi1060
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प्रश्न १: नेपाल-तिब्बत मार्ग का महत्व समझाइए।
उत्तर: नेपाल-तिब्बत नेपाल से तिब्बत आने-जाने का मुख्य रास्ता है। इसी रास्ते से दोनों देशों का व्यापार चलता है। अब तो भारत से तिब्बत से जाने के लिए फरी-कलिंगपोंग का रास्ता खुल गया है। पहले भारत-तिब्बत व्यापार भी इसी मार्ग से होता था। यह व्यपार का ही नहीं, सेना का भी आने-जाने का रास्ता था।

प्रश्न २: तिब्बत में डांडे किसे कहते हैं? यह खतरनाक क्यों हैं?
उत्तर: तिब्बत में पहाड़ों के सीमान्त स्थलों को डांडे कहते हैं। यह सोलह-सत्रह हज़ार फ़ुट की उंचाई पर स्थित है। इनके चारों ओर निर्जन प्रदेश है। दूर-दराज़ तक कोई गाँव नहीं है। पहाड़ों के कोनों तथा नदियों के मोड़ों पर दूर तक आदमी नज़र नहीं आता। इस कारन यहाँ डकैतियाँ और खून हो जाते हैं। डाकू इन्हें सबसे सुरक्षित स्थान मानते हैं।
प्रश्न ३: डांडों में कानून व्यवस्था ढीली होने का क्या कारन है?
उत्तर: डांडों में कानून व्यवस्था ढीली होने का निम्नलिखित कारन हैं -

तिब्बत की सरकार यहाँ पुलिस तथा गुप्तचर विभाग पर पैसा खर्च नहीं करती।
यहाँ पिस्तौल या बन्दूक रखने पर कानूनी प्रतिबन्ध नहीं है।
यहाँ खून या लूटपाट करके बचना आसान है। निर्जन प्रदेश होने के कारण यहाँ खून का पता नहीं चलता। गवाह भी नहीं मिल पाते।

प्रश्न ४: सुमति कौन था?
उत्तर: सुमति मंगोल जाति का एक बौद्ध भिक्षु था। उसका वास्तविक नाम था - लोबज़ंग शेख। इसका अर्थ होता है - 'सुमति प्रज्ञं'। अतः लेखक ने उसे 'सुमति' नाम से पुकारा। यह आदमी लेखक को ल्ह्यासा की यात्रा के दौरान मिल गया था।

प्रश्न ५: 'ल्ह्यासा की ओर' भ्रमण-वृत्तांत से तिब्बत का सामाजिक जीवन के बारे में क्या पता चलता है?
उत्तर: 'ल्ह्यासा की ओर' भ्रमण-वृत्तांत से तिब्बत का सामाजिक जीवन के बारे में हमे निम्नलिखित बातें पता चलता है -
तिब्बत के जीवन में अनेक आराम तथा कठिनाईयाँ हैं। यहाँ जाति-पांति और छुआ-छूत नहीं है। औरतें परदा भी नहीं करतीं। निम्नश्रेणी के भिखमंगों को छोड़कर अन्य कोई अपरिचित व्यक्ति भी घर के भीतर तक जा सकता है। उसके कहने पर घर की बहू या सास उसके लिए चाय बना लाती है। वहाँ चाय, मक्खन और सोडा-नमक मिलाकर और चोंगी में कूटकर मिट्टी के टोटीदार बर्तन में परोसी जाती है।

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Answered by tanishkamohil
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Answer:

ल्हासा की ओर (राहुल सांकृत्यायन)

लेखक लङ्कोर के मार्ग में अपने साथियों से किस कारण पिछड़ गया?

कंजुर क्या हैं? इनकी विशेषताएँ लिखिए।

लेखक ने अपने यात्रा-वृत्तांत में तिब्बत की भौगोलिक यात्रा का जो चित्र खींचा है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।

‘ल्हसा की ओर’ पाठ के आधार पर सुमति की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

तिब्बत में यात्रियों के लिए क्या-क्या कठिनाइयाँ थीं?

डाँड़े तथा निर्जन स्थलों पर डाकू यात्रियों का खून पहले ही क्यों कर देते हैं?

ल्हासा की ओर (राहुल सांकृत्यायन)

Answer

लेखक लङ्कोर के मार्ग में अपने साथियों से निम्नलिखित कारणों से पिछड़ गया-

लेखक का घोड़ा सुस्त था इसलिए वह धीरे-धीरे चल रहा था।

घोड़ा धीरे चलने के कारण लेखक अपने साथियों से पिछड़ गया |

दूसरे रास्ते पर डेढ़-दो मील चलने पर लेखक को लगा कि वह गलत रास्ते पर आ गया है | वहाँ से वह फिर वापस आकर दूसरे रास्ते पर गया।

कंजुर भगवान बुद्ध के वचनों की हस्तलिखित अनुवादित पोथियाँ हैं। ये पोथियाँ मोटे-मोटे कागजों पर अच्छे व बड़े अक्षरों में लिखी हुई हैं। एक-एक पोथी लगभग पंद्रह-पंद्रह सेर की है।

तिब्बत भारत के उत्तर में स्थित पर्वतीय प्रदेश है। यहाँ के रास्ते बड़े ही दुर्गम हैं। ये रास्ते घाटियों से घिरे हुए हैं। यहाँ की जलवायु ठंडी है। यहाँ सर्दी अधिक पड़ती है। एक ओर दुर्गम चढ़ाई है तो दूसरी ओर गहरी-गहरी खाइयाँ हैं। चढ़ते समय जहाँ सूरज माथे पर रहता है वहीं उतरते समय पीठ भी ठंडी हो जाती है। इसके एक ओर बर्फ से ढकी हुई हिमालय की चित्ताकर्षक चोटियाँ हैं तो दूसरी ओर बर्फरहित भूरी पहाड़ियां। पहाड़ियों के मोड़ बड़े ही खतरनाक हैं। इन स्थानों पर डाकुओं का भय रहता है।

सुमति की चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

सुमति लेखक के परम मित्र थे |

वे मिलनसार स्वभाव के थे |

वे समय के पाबंद थे |

सुमति अतिथि सत्कार में कुशल थे |

वे जितनी जल्दी गुस्सा होते थे उठी ही जल्दी शांत भी हो जाते थे |

उन्हें तिब्बत की भोगौलिक स्थिति का पूरा-पूरा ज्ञान था |

वे बौद्ध धर्म में आस्था रखने वाले व्यक्ति थे |

तिब्बत में यात्रियों के लिए निम्नलिखित कठिनाइयाँ थीं-

यात्रियों को डाँड़े जैसे स्थानों पर चढ़ाई करते हुए जाना पड़ता था।

उन स्थानों पर उन्हें जान-माल का खतरा रहता था क्योंकि वहाँ डाकुओं का भय था।

वहाँ के रास्ते ऊँचे-नीचे थे।

वहाँ की जलवायु विषम थी कभी तेज़ सर्दी तो कभी सूरज की गर्मी सहनी पड़ती थी।

तिब्बत के डाँड़े तथा निर्जन स्थलों पर डाकू यात्रियों का खून पहले इसलिए कर देते थे क्योंकि वहाँ की सरकार पुलिस और ख़ुफ़िया विभाग पर ज्यादा खर्च नहीं करती थी | इस कारण वहाँ के डाकुओं को पुलिस का कोई भय नहीं था | वहाँ कोई गवाह नहीं मिलने पर उन्हें सज़ा का भी डर नहीं रहता था | वहाँ हथियारों का कानून न होने से अपनी जान बचाने के लिए पिस्तौल और बंदूक तो लाठी-डंडे की तरह लेकर चलते हैं।

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