F फुटपाथ पर सोते लोग पर फीचर
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आसमान को अपनी छत और फुटपाथ को अपना बिस्तर मानने की बेबसी में हज़ारों ज़िंदगियां फुटपाथ पर शुरू होती हैं और कई बार किसी की लापरवाही के कारण रात के अंधेरे में हमेशा के लिए खामोशी की नींद में सो जाती हैं। सलमान खान के 13 साल पुराने हिट एण्ड रन केस के सुर्खियों में आने के बाद फुटपाथ पर रहने वाले हज़ारों गरीबों की जिंदगी का सवाल एक बार फिर चर्चा का विषय बना हुआ है। एक ओर जहां सलमान के चाहने वालों ने फुटपाथ पर सोने वालों की तुलना कुत्तों तक से कर दी वहीं दूसरी ओर गरीबी के हाथों मजबूर फुटपाथ पर ज़िंदगी गुज़ारने वालों को ना समाज का सहारा है, ना सरकार से कोई आस।
दिल्ली के ना जाने कितने ही ऐसे फुटपाथ हैं जिन पर लोग सोते हैं। सड़क के किनारे बसे हज़ारों लोगों का जीवन हर दिन डर के साए में गुज़रत है। आईटीओ, कश्मीरी गेट, झण्डेवालान, राजौरी गार्डन, तिलक नगर, द्वारका कुछ ऐसी ही जगहें हैं जहां शहर की चकाचौंध के बीच उपेक्षित लोग फुटपाथों पर रहते हैं। जब iamin ने फुटपाथ पर रहने वाले कुछ लोगों से बात की तो उनकी फुटपाथ पर रहने की बेबसी के साथ-साथ समाज और सरकार की अनदेखी का मलाल भी सामने आया।
पिछले कई सालों से अपने परिवार के साथ झण्डेवालान के पास फुटपाथ पर रहने वाली शांति बताती हैं, "वो दिन मैं कभी नहीं भूलती जब मेरा दो साल का बच्चा रात को सोते हुए सड़क पर गिर गया और एक ट्रक वाला उसको कुचल कर चला गया। कई साल पहले हुए हादसे को याद कर के आज भी ऐसे लगता है जैसे कल ही की बात हो। हमें यहां से कोई हटा ना दे इसी डर से हमने कहीं भी शिकायत नहीं की और वैसे शिकायत के बाद भी कौन सा हम गरीबों की कोई सुनता है।"
नौकरी की तलाश में बिहार से दिल्ली आए नरेंद्र कर्ण कई सालों से राजौरी गार्डन के फ्लाएओवर के नीचे बने फुटपाथ पर अपनी ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं। नरेंद्र कहते हैं, "मेहनत मजदूरी करके इतना तक नहीं हो पाता कि किराए पर कमरा लेकर कहीं रह सकें। जो कमाते हैं उसी में से घर वालों के लिए गांव भी भेजना होता है। हम जैसे लोगों के लिए तो मानो इस शहर में कोई जगह ही नहीं है। सरकार ने जो रेनबसेरे बनाए हैं उनमें नशेड़ी अपना हक जमाए पड़े रहते हैं और वहां तो सोते हुए लोगों का सामान, पैसे सब चोरी तक हो जाता है.
दिल्ली के ना जाने कितने ही ऐसे फुटपाथ हैं जिन पर लोग सोते हैं। सड़क के किनारे बसे हज़ारों लोगों का जीवन हर दिन डर के साए में गुज़रत है। आईटीओ, कश्मीरी गेट, झण्डेवालान, राजौरी गार्डन, तिलक नगर, द्वारका कुछ ऐसी ही जगहें हैं जहां शहर की चकाचौंध के बीच उपेक्षित लोग फुटपाथों पर रहते हैं। जब iamin ने फुटपाथ पर रहने वाले कुछ लोगों से बात की तो उनकी फुटपाथ पर रहने की बेबसी के साथ-साथ समाज और सरकार की अनदेखी का मलाल भी सामने आया।
पिछले कई सालों से अपने परिवार के साथ झण्डेवालान के पास फुटपाथ पर रहने वाली शांति बताती हैं, "वो दिन मैं कभी नहीं भूलती जब मेरा दो साल का बच्चा रात को सोते हुए सड़क पर गिर गया और एक ट्रक वाला उसको कुचल कर चला गया। कई साल पहले हुए हादसे को याद कर के आज भी ऐसे लगता है जैसे कल ही की बात हो। हमें यहां से कोई हटा ना दे इसी डर से हमने कहीं भी शिकायत नहीं की और वैसे शिकायत के बाद भी कौन सा हम गरीबों की कोई सुनता है।"
नौकरी की तलाश में बिहार से दिल्ली आए नरेंद्र कर्ण कई सालों से राजौरी गार्डन के फ्लाएओवर के नीचे बने फुटपाथ पर अपनी ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं। नरेंद्र कहते हैं, "मेहनत मजदूरी करके इतना तक नहीं हो पाता कि किराए पर कमरा लेकर कहीं रह सकें। जो कमाते हैं उसी में से घर वालों के लिए गांव भी भेजना होता है। हम जैसे लोगों के लिए तो मानो इस शहर में कोई जगह ही नहीं है। सरकार ने जो रेनबसेरे बनाए हैं उनमें नशेड़ी अपना हक जमाए पड़े रहते हैं और वहां तो सोते हुए लोगों का सामान, पैसे सब चोरी तक हो जाता है.
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फुटपाथ पर सोए लोगों की जिंदगी बहुत कठिन होती है। यह वो लोग होते हैं जो दूसरे राज्यों से रोजी रोटी के लिए बड़े शहरों की ओर पलायन करते हैं।
इन लोगों का कोई ठीकाना नहीं होता है। इसलिए यह लोग फुटपाथ पर अपनी रात गुजारते हैं। बिना मौसम का फिक्र किए इन्हे वहां रहना होता है।
जब ठंड में लोग अपने घरों में रजाई के अंदर सोते हैं था गरीब लोग फुटपाथ पर ठंड में सोने को मजबूर होते हैं।
समय समय पर कुछ संस्था द्वारा इन्हे कम्बल आदि उपलब्ध कराए जाते हैं।
फुटपाथ पर सोने के कारण कई बार ये दुर्घटना के भी शिकार हो जाते हैं। इनलोगों को स्थिति दयनीय है।
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