फागुन के दिन चार होरी खेल मना रे । बिन करताल पखावज बाजे, अणहद की झनकार रे । बिन सुर राग छतीसूँ गावै, रोम रोम रणकार रे ।। सील संतोख की केसर घोली, प्रेम-प्रीत पिचकार रे ।
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