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इतिहास
लौह धातु का पुरातन काल से मनुष्यों को ज्ञान है। भारत के लोगों को ईसा से 300-400 वर्ष पूर्व लोह के उपयोग ज्ञात थे। तमिलनाडु राज्य के तिन्नवेली जनपद में, कर्णाटक के ब्रह्मगिरी तथा तक्षशिला में पुरातत्व काल के लोहे के हथियार आदि प्राप्त हुए हैं, जो लगभग 400 वर्ष ईस्वी के पूर्व के ज्ञात होते हैं। कपिलवस्तु, बुद्धगया आदि में आज से 1,500 वर्ष पहले भी लोग लोहे के उद्योग में निपुण थे, क्योंकि इन स्थानों में लौह धातुकर्म के अनेक चिह्र आज भी प्राप्त हैं। दिल्ली की कुतुबमीनार के सामने लोहे का विशाल स्तंभ चौथी शताब्दी में पुष्कर्ण, राजस्थान के राजा चंद्रवर्मन, के काल में बना था। यह भारत के उत्कृष्ट धातुशिल्प का ज्वलंत उदाहरण है। इस स्तंभ की लंबाई 24 फुट और अनुमानित भार 6 टन से अधिक है। इसके लोहे के विश्लेषण से ज्ञात हुआ है कि इसमें 99.72 प्रतिशत लोहा है। चौथी शताब्दी की धातुकर्मकला का अनुमान इसी से हो सकता है कि 15 शताब्दियों से यह स्तंभ वायु और वर्षा के बीच अप्रभावित खड़ा है। आश्चर्य की बात तो यह है कि इतना लंबा चौड़ा स्तंभ किस प्रकार बनाया गया, क्योंकि आज भी इतना विशाल दंड बनाना कठिन कार्य है।
भारत में इस्पात उद्योग की परंपरा भी बहुत प्राचीन है। ऐतिहासिक लेखों से ज्ञात होता है कि ईसा से 5 शताब्दी पूर्व भारत की इस्पात की तलवारें ईरान आदि देशों में बहुत विख्यात थीं। भारत से लोहा और इस्पात आज से 2,000 वर्ष पूर्व यूरोप तथा ऐबिसिनिया (अफ्रीका) में भेजा जाता था। सम्राट् अशोक के काल में इस्पात के उपकरण अनेक विशेष कार्यों में प्रयुक्त होते थे। ईरानियों तथा अरबों ने इस्पात पर पानी चढ़ाने (tempering) की कला को भारत से ही सीखा। चरक के समय में लोहे का औषधि के रूप में भी उपयोग होता था। उस समय दो प्रकार के लोहे का वर्णन आया है : कालायस् और तीक्षायस्, अर्थात् लौह चूर्ण तथा मोरचा (rust)। मोरचे का प्रयोग रक्तक्षीणता (anaemia) के उपचार में होता था। अश्म कसीस या फेरस सल्फेट (ferrous sulphate) तथा माक्षिक (pyrites) का उपयोग अनेक रोगों (जैसे-दाद या पामा, कुष्ठ, योनिरोग आदि) में बताया गया है।
लोह का उपयोग कुछ अन्य देशों में भी प्राचीन काल से ज्ञात है। प्राचीन मिस्र, ऐसीरिया, यूनान तथा रोम में लोग लोहे का उपयोग करते थे। यूरोप की सर्वप्रथम वात भट्ठी सन् 1350 में जर्मनी में बनी थी। अठारहवीं शताब्दी में कोक (coke) का उपयोग प्रारंभ होने से लोहे के उद्योग में बहुत वृद्धि हुई। उन्नीसवीं शताब्दी में इस्पात बनाने की दो मुख्य विधियाँ, बेसेमर तथा सीमेंस मार्टिन प्रक्रम, निकाली गई।
Iron has been known since ancient times.
The first iron used by humans is likely to have come from meteorites.
Most objects that fall to earth from space are stony, but a small proportion, such as the one pictured, are ‘iron meteorites’ with iron contents of over 90 percent.
Iron corrodes easily, so iron artifacts from ancient times are much rarer that objects made of silver or gold. This makes it harder to trace the history of iron than the less reactive metals.