फूल की आत्मकथा asay of 12lines
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मैं फूल हूं सूरज की पहली किरण के साथ अपनी पंखुड़ियां बिखेर कर खिल जाता हूं. यह उसी प्रकार है जिस प्रकार मानव सुबह होते ही अंगड़ाई लेते हुए अपनी बाहों को खोलकर उठ जाता है. मैं खिलने के बाद पहली बार में इस दुनिया को देखता हूं.
यह दुनिया देखकर मुझे बहुत अच्छा लगता है ऊपर नीला आसमान, रंग बिरंगे उड़ते पंछी, नन्ही तितलियां, ठंडी-ठंडी हवा चल रही होती है, छोटी-छोटी ओस की बूंदें मेरे ऊपर जमा होती है और चारों और हरियाली मुझे बहुत भाती है.
यह वातावरण मुझे बहुत अच्छा लगता है इसीलिए मैं बार-बार इस दुनिया में जन्म लेता रहता हूं. मैं जब खिलता हूं तो मेरी पंखुड़ियां बहुत ही कोमल होती है साथ ही मेरे में से भिन्न-भिन्न प्रकार की सुगंधित सुगंध भी आती है.
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