फूलों की घाटी में कविता
Answers
Explanation:
फूलों की घाटी में / शशिकान्त गीते
शशिकान्त गीते »
फूलों की घाटी में बजता
कानफोड़ सन्नाटा ।
बीच-बीच में यहाँ-वहाँ से
उभर डूबती चीख़ें
डस लेती लिप्सा की नागिन
जो पराग पल दीखें
आदमक़द आकाश का
होता जाता नाटा ।
नदियों-झीलों-झरनों में जा
डूब मरीं मुस्कानें
शोक-धुनों में बदल रही हैं
उत्सव- धर्मी तानें
सन्तूरी सम्मोहन टूटा
चुभता बनकर काँटा ।
HOPE IT HELPS
अब जहाँ मैं जाने वाला हूँ
वहाँ फूल चीख़ उठेंगे
और आवागमन पर रोक लगी होगी
आसमान से भी भारी एक चुप्पी का
साम्राज्य वहाँ होगा
हमें जब कुछ नहीं सूझेगा
तो हम घोड़ों के प्यार में पड़ जाएँगे
और उनके पीछे दौड़ेंगे
मैं और मेरा बेटा
जब वे सर से भी ऊँची घास में ग़ायब हो रहे होंगे
हम स्तब्ध रह जाएँगे
लौटते वक़्त हमारे चेहरे
क्रांति की-सी आभा से मढ़ गए होंगे
अब जहाँ मैं जाने वाला हूँ
वहाँ लोग नहीं होंगे
सिर्फ़ फूल चीख़ उठेंगे
तुम कौन तुम कौन तुम कौन
तुम्हारे साथ कोई स्त्री तो नहीं है
वह अपनी माँ
और मैं अपनी पत्नी के सोच में पड़ जाऊँगा
आसमान-सी चुप्पी फैल जाएगी
तब फूल चीख़ उठेंगे
जब तुम चले थे अपने इलाक़े से
तो क्या अकाल का महीना था।
Answer:
The answer is correct
Explanation:
I have checked it