Hindi, asked by agamsharanbhagat, 2 months ago

फूलों की घाटी में कविता​

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Answered by rsscreation123
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फूलों की घाटी में / शशिकान्त गीते

शशिकान्त गीते »

फूलों की घाटी में बजता

कानफोड़ सन्नाटा ।

बीच-बीच में यहाँ-वहाँ से

उभर डूबती चीख़ें

डस लेती लिप्सा की नागिन

जो पराग पल दीखें

आदमक़द आकाश का

होता जाता नाटा ।

नदियों-झीलों-झरनों में जा

डूब मरीं मुस्कानें

शोक-धुनों में बदल रही हैं

उत्सव- धर्मी तानें

सन्तूरी सम्मोहन टूटा

चुभता बनकर काँटा ।

HOPE IT HELPS

अब जहाँ मैं जाने वाला हूँ

वहाँ फूल चीख़ उठेंगे

और आवागमन पर रोक लगी होगी

आसमान से भी भारी एक चुप्पी का

साम्राज्य वहाँ होगा

हमें जब कुछ नहीं सूझेगा

तो हम घोड़ों के प्यार में पड़ जाएँगे

और उनके पीछे दौड़ेंगे

मैं और मेरा बेटा

जब वे सर से भी ऊँची घास में ग़ायब हो रहे होंगे

हम स्तब्ध रह जाएँगे

लौटते वक़्त हमारे चेहरे

क्रांति की-सी आभा से मढ़ गए होंगे

अब जहाँ मैं जाने वाला हूँ

वहाँ लोग नहीं होंगे

सिर्फ़ फूल चीख़ उठेंगे

तुम कौन तुम कौन तुम कौन

तुम्हारे साथ कोई स्त्री तो नहीं है

वह अपनी माँ

और मैं अपनी पत्नी के सोच में पड़ जाऊँगा

आसमान-सी चुप्पी फैल जाएगी

तब फूल चीख़ उठेंगे

जब तुम चले थे अपने इलाक़े से

तो क्या अकाल का महीना था।

Answered by seemakhan2807
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The answer is correct

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