फिल्म और धारावाहिक संवाद लेखन में अंतर बताइए
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उपन्यास और कहानी की अपेक्षा फिल्मों में संवादों की अधिक एहमीयत होती है, उसका कारण फिल्मों का दृश्य-श्रव्य माध्यम होना है। कहानी और उपन्यास में पाठक कल्पना करता है कि पात्र संवाद बोल रहा है परंतु फिल्में और धारावाहिकों में चित्र स्वरूप पात्र सीधे संवाद बोलते हैं और उन संवादों का अभिनय के साथ प्रकटीकरण भी होता है।
फिल्म और धारावाहिक के संवाद लेखन में अंतर.....
फिल्म और धारावाहिक के संवाद लेखन में कुछ विशेष अंतर तो नहीं होता, क्योंकि संवाद प्रस्तुतीकरण की प्रक्रिया लगभग दोनों में समान ही होती है। दोनों ही दृश्य माध्यम की विधा हैं, इसलिये संवाद की प्रकृति लगभग समान है।
फिल्में छोटी अवधि की होती हैं और धारावाहिक लंबी अवधि के होते हैं, इस दृष्टि से संवादों में कुछ परिवर्तन तो अवश्य होता ही है। फिल्मों के संवाद नाटकीय अंदाज में लिखे जाते हैं, जिनमें भारी भरकम शब्दों का उपयोग किया जाता है जो दर्शकों के मानस पटल पर शीघ्र प्रभाव डाल सकें। फिल्मों की छोटी अवधि होने के कारण छोटे संवाद में ही अधिक बात कहने की कोशिश की जाती है, ताकि कम से कम समय में एक बड़ी कहानी को प्रस्तुत किया जा सके।
धारावाहिकों के साथ ऐसी समस्या नहीं है। धारावाहिक को और अधिक लंबा करना होता है। इससे धारावाहिक के संवाद लंबे लंबे होते हैं जिनमें छोटी सी बात को भी बड़े-बड़े संवादों में प्रस्तुत किया जाता है, ताकि धारावाहिक और अधिक लंबा खींचा जा सके। धारावाहिक के संवाद विस्तार रूप लिए होते हैं और धारावाहिकों के संवाद की शैली ऐसी होती है कि वे कहानी को दूर तक ले जाते हैं, जबकि फिल्मों के संवाद उसी समय अपनी बात कह देने की क्षमता रखते हैं, ताकि कहानी को जल्दी से जल्दी पूरा किया जा सके।
फिल्मों के संवाद छोटे छोटे होते हैं, क्योंकि 2 या 3 घंटे की फिल्म में ही पूरी कहानी कहनी होती है, जबकि धारावाहिक लंबे-लंबे होते हैं क्योंकि धारावाहिक तो महीनों या सालों तक चलने वाले होते हैं। फिल्मों में बड़ी-बड़ी नाटकीय बातें होती हैं, जबकि धारावाहिकों के संवाद सरलता लिये होते है। हालांकि आजकर के धारावाहिक फिल्मों के अंदाज में नाटकीयता लिये होते है, इसलिये उनके संवाद भी नाटकीयता से भरपूर होने लगे हैं।