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ऐसे देश का नाम बतार जहाँ मरिनाशी को मनाधिकार
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बेल्जियम उन कुछ देशों में से एक है, जहाँ अनिवार्य मतदान प्रचलित है और इस तरह यह दुनिया में मतदाता मतदान के उच्चतम दर को धारित करने वालों में से एक है।
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हमारे इस सवाल के जवाब में हर देश के नागरिक का यही दावा होगा कि उनका देश सबसे महान है. हमारा भारत भी एक महान देश है. इसमें कोई दो राय नहीं.
सवाल ये है कि ऐसी क्या बातें हैं, जो किसी देश को महान बनाती हैं?
पिछली क़रीब एक सदी से किसी देश की महानता के दो पैमाने चलन में हैं. एक तो ये कि उस देश की जीडीपी क्या है? यानी वो देश कितना कमाता है. दूसरी, किसी देश में बेरोज़गारी की दर.
इन दो पैमानों पर हम किसी देश की आर्थिक तरक़्क़ी को तो माप सकते हैं. मगर इससे ये पता नहीं लगाया जा सकता कि वो देश अपने नागरिकों की सेवा किस तरह से करता है. उन्हें कैसी सुविधाएं देता है. ज़िंदगी जीना कितना आसान बनाता है.
इसीलिए ज़रूरी है कि हम हर देश को सामाजिक तरक़्क़ी के पैमाने पर कसें. ये जानें कि वो अपने नागरिकों के खान-पान, तालीम, सेहत और घर-बार की ज़रूरतों का ख़याल कैसे रखते हैं. कौन सा देश ऐसा है, जहां समाज के हर तबक़े को बोलने की आज़ादी हासिल है. उसे ख़ुद को दबाए जाने का एहसास नहीं होता.
Explanation:
दुनिया के बड़े अर्थशास्त्रियों की सलाह पर एक सोशल प्रोग्रेस इम्परेटिव शुरू किया गया है. इसके ज़रिए तमाम देशों की सामाजिक तरक़्क़ी को सोशल प्रोग्रेस इंडेक्स के ज़रिए बताया जाता है. सोशल प्रोग्रेस इंडेक्स के सीईओ माइकल ग्रीन कहते हैं कि अमीर देशों के पास ज़्यादा पैसा है. इसलिए आर्थिक तरक़्क़ी के पैमानों पर उन्हें ऊंचा दर्जा हासिल होता है.
लेकिन ग्रीन कहते हैं कि जब हम शिक्षा, स्वास्थ्य और भोजन की ज़रूरतों के हवाले से देखते हैं, तो मालूम होता है कि जो देश ग़रीब माने जाते हैं, वो अपने नागरिकों का ज़्यादा अच्छे से ख़याल रखते हैं.
सामाजिक तरक़्क़ी के इस पैमाने की बुनियाद पर ही डेनमार्क और न्यूज़ीलैंड वो देश बन जाते हैं, जहां बसना लोगों का ख़्वाब होता है.
सोशल प्रोग्रेस इंडेक्स की बुनियाद पर उन देशों की पहचान होती है, जिन्हें आर्थिक मदद की ज़रूरत होती है. फिर उसी हिसाब से उनकी मदद की जाती है. इनकी मदद से ये भी पता चलता है कि किस देश में हालात बेहतर हुए हैं. कहां बिगड़े हैं. और कहां जस के तस बने हैं.
कुछ लोग ये तर्क देते हैं कि आज की अमरीकी सरकार का असर बेहद कम रह गया है. अमरीकी लोगों का अपनी सरकार पर भरोसा बहुत घट गया है. लेकिन विश्व बैंक की वर्ल्डवाइड गवर्नांस इंडिकेटर ये कहते हैं कि अमरीका में प्रशासन 1996 से वैसा ही है, जैसा उस वक़्त था. इस नतीजे पर पहुंचने के लिए अमरीका में हाइवे, प्राइमरी स्कूल और लालफीता शाही की पड़ताल की गई थी.
कई देशों ने सामाजिक तरक़्क़ी के मोर्चे पर ज़बरदस्त छलांग लगाई है. अफ्रीका का देश ट्यूनिशिया ऐसा ही एक मुल्क़ है. 1996 से 2010 तक देश के हालात लगातार बिगड़ रहे थे. लोगों की आवाज़ नहीं सुनी जा रही थी. सरकार की जवाबदेही ही नहीं थी. प्रेस को आज़ादी नहीं हासिल थी. लोगों का न तो चुनाव पर भरोसा था, न अपनी सरकार पर.
इसके बाद 2011 में अरब क्रांति हो गई. उसके बाद से ट्यूनिशिया ने सामाजिक प्रगति के मोर्चे पर काफ़ी तरक़्क़ी की है. कभी ये देश सोशल प्रोग्रेस इंडेक्स में नवें नंबर पर था. आज ये पूर्वी यूरोपीय देश हंगरी के साथ 57वें नंबर पर है.
यहां ये बता दें कि सोशल प्रोग्रेस के इंडेक्स में जो जितने ज़्यादा नंबर पर होता है, वो देश ज़्यादा बेहतर माना जाता है.
हालांकि एक बार अगर देश में अच्छा प्रशासन क़ायम हो जाता है, तो फिर उससे ऊंची पायदान पर जाना मुश्किल होता है. विश्व बैंक के अर्थशास्त्री आर्ट क्रे कहते हैं कि तरक़्क़ी की ऊंची पायदान पर पहुंचना मुश्किल होता है. एक बार अच्छी सरकार आ गई, तो उससे नीचे गिरना भी मुश्किल हो जाता है. और आगे बढ़ना तो और भी.
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