English, asked by kumaramanofficial202, 4 months ago

फ्रॉम व्हिच ईयर द कल्चर सेक्रेटरी ऑफ योर स्कूल राइट ए नोटिस ऑन स्कूल नोटिस बोर्ड इन वेटिंग द मींस ऑफ द स्टूडेंट फॉर क्विज कंपटीशन टू बी हेल्ड ऑन 15 दिसंबर 2020​

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Answered by 1234nospam
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पंडित जवाहरलाल नेहरू शिक्षा का महत्व काफी अच्छी तरह समझते थे। यही कारण है कि उन्होंने पुत्री इंदिरा की प्राथमिक शिक्षा का प्रबंध घर पर ही कर दिया था। बाद में एक स्कूल में उनका दाखिला करवाया गया। 1934-35 में अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद इंदिरा ने शांतिनिकेतन में रवीन्द्रनाथ टैगोर के बनाए गए 'विश्व-भारती विश्वविद्यालय' में प्रवेश लिया।

इसके बाद 1937 में उन्होंने ऑक्सफोर्ड में दाखिला लिया। बचपन से ही इंदिरा गांधी को पत्र पत्रिकाएं तथा पुस्तकें पढ़ने का बहुत शौक था जो स्कूल के दिनों में भी जारी रहा। इसका एक फायदा उन्हें यह मिला कि उनके सामान्य ज्ञान की जानकारी सिर्फ किताबों तक ही सीमित नहीं रही बल्कि उन्हें देश दुनिया का भी काफी ज्ञान हो गया और वह अभिव्यक्ति की कला में निपुण हो गईं। विद्यालय द्वारा आयोजित होने वाली वाद-विवाद प्रतियोगिता में उनका कोई सानी नहीं था।

बावजूद इसके वह हमेशा ही एक औसत दर्जे की विद्यार्थी रहीं। अंग्रेजी के अतिरिक्त अन्य विषयों में वह कोई विशेष दक्षता नहीं प्राप्त कर सकीं। लेकिन अंग्रेजी भाषा पर उन्हें बहुत अच्छी पकड़ थी। इसकी वजह थी पिता पंडित नेहरू द्वारा उन्हें अंग्रेजी में लिखे गए लंबे-लंबे पत्र, चूंकि पंडित नेहरू अंग्रेजी भाषा के इतने अच्छे ज्ञाता थे कि लॉर्ड माउंटबेटन की अंग्रेजी भी उनके सामने फीकी लगती थी।

1942 में इंदिरा गांधी का प्रेम विवाह फिरोज गांधी से हुआ। पारसी युवक फिरोज गांधी से इंदिरा की मुलाकात ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यावय में ही पढ़ाई के दौरान हुई थी जो उस समय लंदन स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स में अध्ययन कर रहे थे। बाद के दिनों में उन दोनों की मित्रता इस हद तक परवान चढ़ी कि उन्होंने विवाह करने का फैसला कर लिया और इंदिरा गांधी ने अपना यह विचार पंडित नेहरू के सामने रख दिया। लेकिन पंडित नेहरू इसके लिए तैयार नहीं हुए क्योंकि उन का मानना था कि शादी सजातीय परिवार में ही होनी चाहिए।

स्वयं उन्होंने भी अपने पिता पंडित मोतीलाल नेहरू का आदेश माना था। उन्होंने कई प्रकार से इंदिरा को समझाने का भी प्रयास किया लेकिन इंदिरा की जिद कायम रही। तब कोई भी रास्ता निकलता न देखकर नेहरू जी ने अपनी हामी भर दी। शादी के बाद 1944 में उन्होंने राजीव गांधी और इसके दो साल के बाद संजय गांधी को जन्म दिया। शुरुआत में तो उनका वैवाहिक जीवन ठीक रहा लेकिन बाद में उसमें खटास आ गई और कई सालों तक उनका रिश्ता हिचकौले खाता रहा। इसी दौरान 8 सितंबर 1960 को जब इंदिरा अपने पिता के साथ एक विदेश दौरे पर गई हुईं थीं तब फिरोज गांधी की मृत्यु हो गई।

इंदिरा गांधी को परिवार के माहौल में राजनीतिक विचारधारा विरासत में प्राप्त हुई थी। 1941 में ऑक्सफोर्ड से भारत वापस आने के बाद वे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गईं। सन् 1947 के भारत विभाजन के दौरान उन्होंने शरणार्थी शिविरों को संगठित करने तथा पाकिस्तान से आए लाखों शरणार्थियों के लिए चिकित्सा संबंधी देखभाल प्रदान करने में मदद की। उनके लिए प्रमुख सार्वजनिक सेवा का यह पहला मौका था। धीरे-धीरे पार्टी में उनका कद काफी बढ़ गया।

42 वर्ष की उम्र में 1959 में वह कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष भी बन गईं। इस पर कई आलोचकों ने दबी जुबान से पंडित नेहरू को पार्टी में परिवारवाद फैलाने का दोषी ठहराया था। फिर 27 मई 1964 को नेहरू के निधन के बाद इंदिरा चुनाव जीतकर सूचना और प्रसारण मंत्री बन गईं।

11 जनवरी 1966 को भारत के दूसरे प्रधानमंत्री श्री लालबहादुर शास्त्री की असामयिक मृत्यु के बाद 24 जनवरी 1966 को श्रीमती इंदिरा गांधी भारत की तीसरी और प्रथम महिला प्रधानमंत्री बनीं। इसके बाद तो वह लगातार तीन बार 1967-1977 और फिर चौथी बार 1980-84 देश की प्रधानमंत्री बनीं।

1967 के चुनाव में वह बहुत ही कम बहुमत से जीत सकी थीं लेकिन 1971 में फिर से वह भारी बहुमत से प्रधामंत्री बनीं और 1977 तक रहीं। 1977 के बाद वह 1980 में एक बार फिर प्रधानमंत्री बनीं और 1984 तक प्रधानमंत्री के पद पर रहीं।

16 वर्ष तक देश की प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा गांधी के शासनकाल में कई उतार-चढ़ाव आए। लेकिन 1975 में आपातकाल 1984 में सिख दंगा जैसे कई मुद्दों पर इंदिरा गांधी को भारी विरोध-प्रदर्शन और तीखी आलोचनाएं भी झेलनी पड़ी थी।

बावजूद इसके रूसी क्रांति के साल में पैदा हुईं इंदिरा गांधी ने 1971 के युद्ध में विश्व शक्तियों के सामने न झुकने के नीतिगत और समयानुकूल निर्णय क्षमता से पाकिस्तान को परास्त किया और बांग्लादेश को मुक्ति दिलाकर स्वतंत्र भारत को एक नया गौरवपूर्ण क्षण दिलवाया। लेकिन 31 अक्टूबर 1984 को उन्हें अपने अंगक्षक की ही गोली का शिकार होना पड़ा और वह देश की एकता और अखंडता के लिए कुर्बान हो गईं।

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