Hindi, asked by Ishanbro3057, 9 months ago

"फिर से सोचने की आवश्यकता है" निबन्ध में आचार्य द्विवेदी ने सन्देश व्यक्त किया है, उसे स्पष्ट कीजिए।

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Answered by shishir303
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फिर से सोचने की आवश्यकता है निबंध में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ने अपने स्वतंत्र भारत में राष्ट्रभाषा के सम्मान का प्रश्न उठाया है इस निबंध के माध्यम से आचार्य द्विवेदी जी ने यह संदेश दिया है कि करोड़ों भारतीयों की भावनाओं का ध्यान रखकर ही राष्ट्रभाषा का निर्धारण करना चाहिए उनके संदेश इस प्रकार हैं हमारे स्वतंत्र भारत की अपनी राष्ट्रभाषा होनी चाहिए जो अस्मिता और देश के गौरव का प्रतीक हो कुछ लोग अंग्रेजी को राष्ट्रभाषा बनाने के पक्ष में हैं जो बिल्कुल भी उचित नहीं है क्योंकि वह गुलामी का प्रतीक है जबकि हिंदी एक ऐसी भाषा है जो लास्ट के अधिकांश लोगों द्वारा बोली एवं समझी जाती है वही राष्ट्रभाषा बनने योग है क्योंकि यह जन्माष्टमी की भाषा है हर कोई समझ लेता है अंग्रेजी केवल कुछ प्रबुद्ध वर्ग के लोगों तक ही सीमित है यह आम जनता की भाषा नहीं है स्वतंत्रता प्राप्ति में अनेक युवाओं ने अपने प्राणों का बलिदान दिया और राष्ट्रभाषा और हिंदी के सम्मान के लिए पूरा कार्य किया हमें इन बलिदानी व्यक्तियों के बलिदान को व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिए और अपने देश के लिए अपनी ही भाषा का चुनाव करना चाहिए किसी विदेशी भाषा का नहीं द्विवेदी जी कहते हैं कि अंग्रेजी भाषा को बोलने और समझने वाले पूरी दुनिया की कुल आबादी में आधे प्रतिशत से भी कम लोग हैं केवल चंद लोगों की खातिर अपनी अपने ही देश में अपनी ही भाषा विशेषकर हिंदी के साथ अन्याय करें यह सब कदापि उचित नहीं है वास्तव में भारत की राष्ट्रभाषा बनने का कोई एक भाषा पूरा अधिकार रखती है तो वह भाषा हिंदी ही है निबंध में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ने अपने स्वतंत्र भारत में राष्ट्रभाषा के सम्मान का प्रश्न उठाया है। इस निबंध के माध्यम से आचार्य द्विवेदी जी ने यह संदेश दिया है कि करोड़ों भारतीयों की भावनाओं का ध्यान रखकर ही राष्ट्रभाषा का निर्धारण करना चाहिए। उनकी संदेश इस प्रकार हैं..

हमारे स्वतंत्र भारत की अपनी राष्ट्रभाषा होनी चाहिए जो अस्मिता और देश के गौरव का प्रतीक हो। कुछ लोग अंग्रेजी को राष्ट्रभाषा बनाने के पक्ष में हैं, जो बिल्कुल भी उचित नहीं है, क्योंकि वह गुलामी का प्रतीक है जबकि हिंदी एक ऐसी भाषा है जो राष्य् के अधिकांश लोगों द्वारा बोली एवं समझी जाती है वही राष्ट्रभाषा बनने योग है क्योंकि यह राष्ट्र की भाषा है ,हर कोई समझ लेता है। अंग्रेजी केवल कुछ प्रबुद्ध वर्ग के लोगों तक ही सीमित है यह आम जनता की भाषा नहीं है।

स्वतंत्रता प्राप्ति में अनेक युवाओं ने अपने प्राणों का बलिदान दिया और राष्ट्रभाषा और हिंदी के सम्मान के लिए पूरा कार्य किया हमें इन बलिदानी व्यक्तियों के बलिदान को व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिए और अपने देश के लिए अपनी ही भाषा का चुनाव करना चाहिए, किसी विदेशी भाषा का नहीं।

द्विवेदी जी कहते हैं कि अंग्रेजी भाषा को बोलने और समझने वाले पूरी दुनिया की कुल आबादी में आधे प्रतिशत से भी कम लोग हैं केवल चंद लोगों की खातिर हम अपने ही देश में अपनी ही भाषा विशेषकर हिंदी के साथ अन्याय करें यह सब कदापि उचित नहीं है। वास्तव में भारत की राष्ट्रभाषा बनने का कोई एक भाषा पूरा अधिकार रखती है तो वह भाषा हिंदी ही है।

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