फ्रांसीसी कंति के
बाद महिलाओं को क्या लाभ हुआ?
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उच्च बुर्ज़ुआ वर्ग की प्रधानता
लुई फिलिप ने सिंहासन पर बैठने पर जनता को एक उदार संविधान दिया था। फिर भी इससे जनता का अधिक भला नहीं हुआ। मत का आधार धन होने के कारण प्रतिनिधि सभा में सदैव बुर्जुआ वर्ग के लोगों की प्रधानता बनी रही, जन साधारण की पहुंच नहीं थी। अतः बुर्ज़ुआ वर्ग के लोग अपने हितों का ध्यान रखते हुए ही कानून बनाया करते थे। इस प्रकार लुई फिलिप के शासन से जनता को कोई लाभ नहीं हुआ। वस्तुतः 1830 की क्रांति से उनको कोई लाभ नहीं हुआ। इससे वे लुई फिलिप को घृणा की दृष्टि से देखने लगे। जेक्स ड्रोज के अनुसार "1848 का सामाजिक संघर्ष एक त्रिपक्षीय वर्ग संघर्ष था जिसमे मध्यम वर्ग के दो भाग उच्च बुर्जुआ और निम्न बुर्जुआ एवं निम्न वर्ग शामिल था"
समाजवादी विचारधारा
1848 की फ्रांसीसी क्रांति की पृष्ठभूमि समाजवादियों ने तैयार की। लुई ब्लां जैसे समाजवादी विचारकों ने मजदूरों के हितों का प्रतिपादन किया उसने सरकार की आर्थिक नीति की आलोचना की। फिलिप की सरकार को पूंजीपतियों की सरकार घोषित किया। उसने एक महत्वपूर्ण सिद्धांत दिया कि प्रत्येक व्यक्ति को काम पाने का अधिकार है और राज्य का कर्तव्य है कि वह उसे काम दे। इस तरह लुई ब्लां के समाजवादी विचारों ने जनता को लुई फिलिप का शासन उखाड़ फेंकने की प्रेरणा दी।
लुई फिलिप की विदेश नीति
लुई फिलिप की विदेश नीति बहुत दुर्बल थी। बेल्जियम तथा पूर्वी समस्या के मामले में उसे इंग्लैण्ड से शिकस्त खानी पड़ी थी जिससे फ्रांस की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा को आघात पहुंचा था। फ्रांस की जनता इन असफलताओं से बहुत असंतुष्ट थी और उसकी नाकामियों से नाखुश थी,9
गीजो मंत्रिमंडल की प्रतिक्रियावादी नीति
गीजों के मंत्रिमंडल (1840-48) ने 1848 की क्रांति को लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह श्रमिकों की दशा में सुधार लाने का विरोधी था और इसलिए उनके लिए कानून बनाना नहीं चाहता था। उसने राजा को किसी भी तरह परिवर्तन न करने की सलाह दी। फलतः जनता में असंतोष व्याप्त हो गया अतः जनता ने 24 फरवरी 1848 को गीजो एवं लुई फिलीप के विरूद्ध विद्रोह कर दिया।
यूरोप में 1848 की क्रांति की गूँज
1848 की फ्रांसीसी क्रांति का प्रभाव केवल फ्रांस तक सीमित नहीं रहा, इस क्रांति का प्रभाव संपूर्ण यूरोप पर पड़ा। 1848 में यूरोप में कुल मिलाकर 17 क्रांतियां हुई। फ्रांस के बाद वियना, हंगरी, बोहेमिया, इटली, जर्मनी, प्रशा, स्विट्जरलैण्ड, हॉलैण्ड आदि में विद्रोह हुए। 1830 की फ्रांसीसी क्रांति की तुलना में 1848 की क्रांति का प्रभाव अधिक व्यापक और प्रभावशाली रहा। विशेष रूप से मध्य यूरोप इतना अधिक प्रभावित हुआ कि वियना कांग्रेस ने जो प्रतिक्रियावादी राजनीतिक ढांचा खड़ा किया था उसकी नींव हिल उठी।
आस्ट्रिया की क्रांति
फ्रांस की 1848 की क्रांति से प्रभावित होकर आस्ट्रिया के देशभक्त काफी प्रभावित हुये। विद्यार्थी, मजदूर, अध्यापक ने जुलूस निकाला और मेटरनिक के मकान को घेर लिया। शहर में अनेक स्थानों पर मोर्चाबंदी हुई जनता और सरकार में झड़प हुई। निराश होकर मेटरनिक ने त्यागपत्र दे दिया और इंग्लैण्ड भाग गया। मेटरनिक का पलायन क्रांति की बहुत बड़ी विजय थी। आस्ट्रिया के सम्राट फर्डिनेंड प्रथम ने देशभक्तों की मांग को स्वीकार कर लिया। पे्रस, भाषण और लेखनी पर से प्रतिबंध उठा लिये गये लेकिन क्रांतिकारियों में मतभेद होने के कारण अंत में राजा ने क्रांतिकारियों का दमन कर दिया और पुनः आस्ट्रिया में निरंकुश शासन स्थापित हुआ।
बोहेमिया में क्रांति
आंदोलनकारियों ने आस्ट्रिया की अधीनता में बोहेमिया के लिए स्वतंत्र शासन की मांग की किन्तु कठोरतापूर्वक दमन कर क्रांति को दबा दिया गया।
हंगरी में क्रांति
वियना क्रांति से उत्साहित होकर हंगरी के देशभक्तों ने विद्रोह का झंडा बुलंद किया। उस समय हंगरी आस्ट्रिया की अधीनता में था। हंगरी में सामंतों का बोलबाला था जिनके अत्याचारों से जनता तंग आ गई थी। अतः फ्रांसीसी क्रांति और वियना क्रांति से उत्साहित होकर जनता ने लोकप्रिय नेता कोसूथ तथा डीक के नेतृत्व में उदारवादी सुधारों के साथ हंगरी के लिए पूर्ण स्वशासन की मांग की। हंगरीवासी अपनी मांग पूरी ने होने पर क्रांति के लिए कठिबद्ध हो गये। उस पर सम्राट ने शासन सुधार की मांगे स्वीकार कर प्रेस की स्वतंत्रता, कुलीनों के विशेषाधिकारों का अंत, धार्मिक स्वतंत्रता घोषित की। इस तरह हंगरी अब अर्द्धस्वतंत्र हो गया किन्तु हंगरी में भिन्न-भिन्न भाषा-भाषी जातियों ने भी अपनी स्वतंत्रता के लिए आंदोलन आरंभ कर दिया। अतः आस्ट्रिया ने इस फूट से लाभ उठाया और रूस के साथ मिलकर हंगरी के विरूद्ध कार्यवाही की अतः पुनः हंगरी आस्ट्रिया का अधीनस्थ राज्य बन गया।
प्रशा में क्रांति
मेटरनिख के पतन से बर्लिन में खुशियां मनाई गई। प्रशा, जर्मनी का सबसे बड़ा राज्य था। क्रांति के समाचारों से उत्साहित होकर जनता ने जुलूस निकाला और प्रशा के राजा के महल को घेर लिया। राजा ने भीड़ पर गोली चलवा दी फलतः विद्रोह ने भयंकर रूप धारण कर लिया अंत में राजा को देशभक्तों की मांग माननी पड़ी। इस बीच जर्मन देशभक्तों ने फ्रंकफर्ट में सार्वभौमिक मताधिकार द्वारा संपूर्ण जर्मनी में चुनाव कराकर एक राष्ट्रीय संसद की स्थापना की। इसमें एक संविधान बनाया जिसके अनुसार संर्पूा जर्मनी के लिए प्रशा के राजा को राजा बनाया गया लेकिन प्रशा के राजा ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया और क्रांतिकारियों के विरूद्ध कड़ा कदम उठाकर इसे कुचल दिया।