फ्रांसीसी लोगों के बीच सामूहिक पहचान का भाव पैदा करने के लिए फ्रांसीसी क्रांतिकारियों ने क्या कदम उठाए?
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उत्तर :
फ्रांसीसी लोगों के बीच सामूहिक पहचान का भाव पैदा करने के लिए फ्रांसीसी क्रांतिकारियों ने निम्नलिखित कदम उठाएं :
(क) उन्होंने पितृ भूमि तथा नागरिक जैसे विचारों को लोगों तक पहुंचाया। इन विचारों ने संयुक्त समुदाय के विचार पर बल दिया। इस समुदाय को एक संविधान के अंतर्गत समान अधिकार दिए जाने थे।
(ख) क्रांतिकारियों ने एक नया तिरंगा फ्रांसीसी झंडा चुना। इस झंडे ने पुराने राष्ट्रीय झंडे की जगह ली।
(ग) सक्रिय नागरिकों द्वारा स्टेट जेनरल का चुनाव किया जाने लगा । स्टेट जेनरल का नाम बदलकर नेशन असेंबली कर दिया गया।
(घ) क्रांतिकारियों द्वारा शहीदों के गुणगान, राष्ट्रीय गीत और शपथों ने भी राष्ट्रीय भावना को बढ़ावा दिया।
(ड़) एक केंद्रीय प्रशासनिक व्यवस्था लागू की गई। इसने अपने भूभाग में रहने वाले सभी लोगों के लिए एक जैसे कानून बनाएं।
(च) पूरे देश में माप तोल की एक समान प्रणालियां लागू की गई।
(छ) देश के अंदर सभी प्रकार के आयात निर्यात कर समाप्त कर दिया गए।
(ज) भिन्न-भिन्न क्षेत्रीय भाषाओं के स्थान पर पूरे राष्ट्र की एक ही भाषा फ्रेंच हो गई।
आशा है कि है उत्तर आपकी मदद करेगा।
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निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखें-
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Explanation:
इसके लिए प्रयुक्त अंग्रेजी शब्द सोशियोलॉजी लेटिन भाषा के सोसस तथा ग्रीक भाषा के लोगस दो शब्दों से मिलकर बना है जिनका अर्थ क्रमशः समाज का विज्ञान है। इस प्रकार सोशियोलॉजी शब्द का अर्थ भी समाज का विज्ञान होता है। परंतु समाज के बारे में समाजशास्त्रियों के भिन्न – भिन्न मत है इसलिए समाजशास्त्र को भी उन्होंने भिन्न-भिन्न रूपों में परिभाषित किया है।
अति प्राचीन काल से समाज शब्द का प्रयोग मनुष्य के समूह विशेष के लिए होता आ रहा है। जैसे भारतीय समाज , ब्राह्मण समाज , वैश्य समाज , जैन समाज , शिक्षित समाज , धनी समाज , आदि। समाज के इस व्यवहारिक पक्ष का अध्यन सभ्यता के लिए विकास के साथ-साथ प्रारंभ हो गया था। हमारे यहां के आदि ग्रंथ वेदों में मनुष्य के सामाजिक जीवन पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है।
इनमें पति के पत्नी के प्रति पत्नी के पति के प्रति , माता – पिता के पुत्र के प्रति , पुत्र के माता – पिता के प्रति , गुरु के शिष्य के प्रति , शिष्य के गुरु के प्रति , समाज में एक व्यक्ति के दूसरे व्यक्ति के प्रति , राजा का प्रजा के प्रति और प्रजा का राजा के प्रति कर्तव्यों की व्याख्या की गई है।
मनु द्वारा विरचित मनूस्मृति में कर्म आधारित वर्ण व्यवस्था और उसके महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है और व्यक्ति तथा व्यक्ति , व्यक्ति तथा समाज और व्यक्ति तथा राज्य सभी के एक दूसरे के प्रति कर्तव्यों को निश्चित किया गया है। भारतीय समाज को व्यवस्थित करने में इसका बड़ा योगदान रहा है इसे भारतीय समाजशास्त्र का आदि ग्रंथ माना जा सकता है।