Hindi, asked by ak5394534p4k1x6, 2 months ago

“फेसबकु और यिु ािगि” अथिा “महानगरों में बढ़ते अपराि” विषय पर एक आलेख ललखें|​

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Answered by prajin642
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Answer:

पिछले कुछ वर्षो से महानगरों में अपराध की समस्या तीव्र गति से बढ़ती जा रही हैं । हर रोज कम दिन दहाड़े डकैती, अपहरण, हत्या, दहेज के लिए बहू को जलाने, जालसाजी आदि की खबरें पढ़ते या सुनते हैं ।

बड़े शहरों में असुरक्षा की भावना दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है । यहाँ आम व्यक्ति की जान और सम्पत्ति सुरक्षित नहीं है । इस प्रकार की घटनाओं को उन्होंने अपनी नियति मान लिया है । इससे दुर्भाग्यपूर्ण और क्या हो सकता है कि इन अपराधों को नियंत्रित करने के लिए कोई भी सख्त कदम नहीं उठे हैं और न ही उनके कारणों को जानने का कोई प्रयास किया गया है ।

इन अपराधों का मुख्य कारण औद्योगीकरण का विकास और गरीब गांववालों का जीविका की तलाश में शहर की ओर पलायन हैं । गाँव के दिशाहीन नवयुवक कृषि को त्याग कर शहर आ रहे हैं, क्योंकि उनकी जमीन जमींदारों के कब्जे में हैं । गरीबी उन्हें शहर की ओर भागने को मजबूर करती हैं ।

गाँव के गरीब युवक जब शहर पहुँचते हैं, तो यहां की चकाचौंध, ऐश्वर्य उन्हें चकित कर देता है । दोनों वर्गो के मध्य आर्थिक अन्तर बहुत अधिक होता हैं । उन्हें यहाँ उचित जीविका नहीं मिल पाती, उनके रहने और खाने की सुविधा भी निम्न स्तर की होती है । इस कारण उनमें कुंठा, नैराश्य की भावना उत्पन्न होती है । यही कुंठा अपराध और असामाजिक कार्यो को जन्म देती है ।

शहरी युवकों में भी अपराधिक भावना जोर पकड़ती जा रही है । विज्ञान के चमत्कारों के प्रयोग से युवक रक्षाकर्मियों की नाक के नीचे से अपराध करके फरार हो जाते है । हमारी पुलिस सेवा में सचेत कर्मियों की कमी है, यहां भी भ्रष्टाचार व्याप्त हैं । अधिकांश लोग तो यह मानते है कि पुलिस और अपराधियों की आपस में साँठ-गाँठ होती है । अपराधी पैसे के बल पर जुर्म से बरी हो जाते हैं ।

अपराधों की संख्या में वृद्धि का तीसरा कारण महानगरों की अर्थव्यवस्था है । यहाँ की जिन्दगी ऐश्वर्यपूर्ण है । ईमानदार और सच्चे व्यक्तियों का जीविका निर्वाह अत्यंत कठिन हैं । वे तो गरीबी की हालत में जीते है और भ्रष्ट तथा बेईमान व्यक्ति उन्नति करते हैं ।

कई लोग इच्छा या अनिच्छा से असामाजिक और अपराधिक तत्वों में शामिल हो जाते हैं । इस कारण भी अपराधों की संख्या दिन-प्रति-दिन बढ़ती जा रही हैं । अपराधिक प्रवृति में वृद्धि एक सामाजिक और आर्थिक समस्या के साथ-साथ राजनैतिक समस्या भी हैं । इन्हीं स्तरों पर इसके समाधान को ढूँढने की आवश्यकता है ।

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