फादर कामिल बुल्के के परिवार कैसा था
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कामिल बुल्के पथ स्थित सेंट जेवियर्स कॉलेज परिसर संस्कृतमय हो गया। ऐसा लग रहा था जैसे किसी मंदिर में पुरोहितों द्वारा अनुष्ठान किया जा रहा हो। लेकिन ये चौपाई हिंदी और संस्कृत के विद्वानों द्वारा उच्चारित की जा रही थी।
अवसर था कर्मयोगी ऋषिकल्प पद्मभूषण से अलंकृत और तुलसीभक्त डॉ कामिल बुल्के के पार्थिव अवशेष का कॉलेज परिसर में पुण्य स्थापित कार्यक्रम का। यह आयोजन बुधवार को सेंट जेवियर्स कॉलेज प्रबंधन द्वारा आयोजित किया गया। मंगलवार को नई दिल्ली निकोलस सेमेट्री से रांची लाए गए डॉ बुल्के के अवशेष की पूरे विधि विधान के साथ कॉलेज परिसर में लगी बुल्के की प्रतिमा के समक्ष हड़गड़ी की गई। इसके साथ ही फादर बुल्के को अपनी मिट्टी नसीब हो गई और धरती मां भी धन्य हुईं।
राष्ट्रभाषा के कर्मठ योद्धा थे बाबा: कार्डिनल
कार्डिनल तेलेस्फोर पी टोप्पो ने कहा कि बाबा बुल्के की झलक, ईश्वर की झलक दे जाती है। वे राष्ट्र भाषा हिंदी के कर्मठ योद्धा थे। सेंट मेरीज कैथेड्रल में आयोजित संध्याकालीन प्रार्थना में काफी संख्या में लोग बाबा बुल्के को सुनने के लिए आया करे थे। आज तक कैथोलिक कलीसिया के लोग बाबा बुल्के के अनुवादित बाईबल ही पढ़ते है। जो हिंदी भाषी क्षेत्र में काफी प्रचलित है। उन्होंने तुलसी की आध्यात्मिकता, मानवीय मूल्यों का रामचरित मानस के माध्यम से अध्ययन किया।
रामकथा में किया भारत का चित्रण: डॉ मुक्तेश्वरनाथ
विश्व भारती शांति निकेतन डॉ मुक्तेश्वरनाथ तिवारी ने कहा कि डॉ बुल्के ने रामकथा के माध्यम से भारत का सांस्कृतिक चित्रण किया है। बुल्के हिंदी के ऐसे सेवक है, जो रामचरित मानस और तुलसी का अध्ययन करते हुए कर्म की उत्तेजना पाई। उन्होंने कहा कि फादर बुल्के ने कहा था कि धन्य है भारत भूमि। जहां खलनायक भी धर्म की बातें करता है। बाबा बुल्के निर्मित अंग्रेजी-हिंदी शब्दकोष सर्वाधिक ब्रिकी होने वाली पुस्तक है। कर्मयोगी ने दो शब्दकोष तैयार किए।
भारत माता के सच्चे सपूत थे फादर बुल्के: डॉ शिवनंदन
विनोबा भावे विवि हिंदी विभाग के पूर्व एचओडी डॉ शिवनंदन प्रसाद ने कहा कि बाबा बुल्के रामभक्त नहीं वरन तुलसी भक्त थे। उन्होंने राम के संस्कार-आदर्शों का चित्रण किया। बाबा बुल्के हमेशा स्मरण किए जाने वाले व्यक्ति है। जिनके अनेक रूप उनके जीवन में देखने को मिलते हैं। मानवशास्त्र के अनुसार एक मानव में जो गुण होना चाहिए, वह सभी गुण उनमें थे। बुल्के भारत माता के सच्चे सपूत थे। उन्होंने धार्मिकता, भाईचारा और निस्वार्थ सेवा का संदेश दिया।