फल-फूलों के रूप अलग पर भूमि उर्वरा एक है,
धरा बाँटकर हृदय न बाँटो, दूर रहो संहार से।।
कभी न सोचो तुम अनाथ, एकाकी या निष्प्राण रे!
बूंद-बूंद करती है मिलकर, सागर का निर्माण रे!
लहर लहर देती संदेश यह, दूर क्षितिज के पार से।।
धर्म वही है, जो करता है, मानव का उद्धार रे!
धर्म नहीं वह जो कि डाल दे, दिल में एक दरार रे!
करो न दूषित आँगन मन का, नफरत की दीवार से।।
सीमाओं को लांघ न कुचलो, स्वतंत्रता का शीश रे!
बमबारी की स्वरलिपि में मत लिखो शांति का गीत रे।
बंध न सकेगी लय गीतों की, ऐसे स्वर विस्तार से।।
राजनीति में स्वार्थ न लाओ, परोन विष संसार में,
पशुता भरकर संस्कृति में, मत भरो वासना प्यार में,
करो न कलुषित जन-जीवन तुम, रूप प्रणय व्यापार से।।
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So sorry. Please mark me brainlist.
Thanks for the question.
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