फर्क नहीं पड़ता कि आज आप कितने सफल है फर्क यह पड़ता है कि जितने सफल आप हो सकते थे उसने है क्या
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सफलता क्या है? हर किसी की सफलता की परिभाषा दूसरों से भिन्न है। इसलिए हर किसी की सफलता की व्याख्या अलग होती है। कुछ के लिए यह मन की एक अवस्था है, कुछ के लिए भौतिक सुख, तो कुछ के लिए एक निश्चित पद को पाना और कुछ के लिए समाज में कुछ बड़ा कर नाम और शोहरत पाना।
मेरे विचार से सफलता कभी पूर्ण नहीं होती है बल्कि यह सापेक्ष होती है। यह सिर्फ एक अल्पविराम है, पूर्णविराम नहीं। यह अंत न होकर जीवन की यात्रा का सिर्फ एक मोड़ है। इससे कभी संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता। असल में सफलता हमेशा बेहतर करने और आगे बढ़ने का संदेश देती है। मुझे अपने जीवन में एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं मिला है
जो अपनी सफलता से संतुष्ट हो, चाहे वह शीर्ष राजनीतिज्ञ या नामचीन व्यक्ति हो या एक सफल खिलाड़ी हो। मैंने हमेशा इन सभी को दूसरों के साथ प्रतिस्पर्धा करते हुए ही पाया है और दूसरों की सफलता को देखते हुए एक व्यक्ति अपनी सफलता का आनंद ही नहीं ले पाता।