Hindi, asked by rekhamjain1999, 6 months ago

फटी पुस्तक की आत्मकथा पर निबंध​

Answers

Answered by poonamjadhav2351988
18

Plzz plz plz plz plz plz plz Mark brain list

Attachments:
Answered by rupeshgs02
15

मैं पुस्तक हूँ ।

जिस रूप में आपको आज दिखाई देती हूं प्राचीन काल में मेरा यह स्वरूप नही था । गुरु शिष्य को मौखिक ज्ञान देते थे । उस समय तक कागज का आविष्कार ही नहीं हुआ था । शिष्य सुनकर ज्ञान ग्रहण करते थे ।

मुझे कागज का रूप देने के लिए घास-फूस, बांस के टुकड़े, पुराने कपड़े के चीथड़े को कूट पीस कर गलाया जाता है उसकी लुगदी तैयार करके मुझे मशीनों ने नीचे दबाया जाता है, तब मैं कागज के रूप में आपके सामने आती हूँ ।

मेरा स्वरूप तैयार हो जाने पर मुझे लेखक के पास लिखने के लिए भेजा जाता है । वहाँ मैं प्रकाशक के पास और फिर प्रेस में जाती हूँ । प्रेस में मुश् छापेखाने की मशीनों में भेजा जाता है । छापेखाने से निकलकर में जिल्द बनाने वाले के हाथों में जाती हूँ ।

एक दिन एक विद्यार्थी ने मुझे खरीद लिया और अपने घर ले आया।उसने बड़े प्यार से मेरे कवर पर अपना नाम लिखा और मेरे पन्नों पर लिखने लगा। अगले दिन वह मुझे अपने बस्ते में रखकर स्कूल ले गया। उसने अपने सब साथियों को मुझे दिखाया। उन लोगों ने मेरी बहुत तारीफ करी।

वह मुझे पाकर बहुत खुश था। वह प्रतिदिन मेरे पन्नों पर लिखकर पढ़ता था और मुझे अपने साथ रखता था। इस प्रकार कई साल बीत गए। वह बड़ा हो गया और मैं पुरानी हो गयी। धीरे धीरे मेरे पन्ने पीले और कमज़ोर हो गए। मेरे कागजों के किनारे फटने लगे और कई पन्ने निकल गए।

इसलिए उसने मुझे अलमारी में एक जगह रख दिया। अब मैं फट गयी हूँ और यहीं रहती हूँ। वह कभी कभी मुझे देखने आता है और मुझे देखकर बहुत खुश होता है।

Similar questions