फ़िल्मोद्योग' कर उचित सांचि-विच्छेद
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पहली बोलती फिल्म जिस साल प्रदर्शित हुई, उसी साल कई मूक फ़िल्में भी विभिन्न भाषाओं में बनीं। मगर बोलती फ़िल्मों का नया दौर शुरू हो गया था।
पहली बोलती फ़िल्म आलम आरा बनानेवाले फ़िल्मकार थे, अर्देशिर एम० ईरानी। अर्देशिर ने 1929 में हॉलीवुड की एक बोलती फ़िल्म ‘शो बोट’ देखी और उनके मन में बोलती फ़िल्म बनाने की इच्छा जगी। पारसी रंगमंच के एक लोकप्रिय नाटक को आधार बनाकर उन्होंने अपनी फ़िल्म की पटकथा बनाई। इस नाटक के कई गाने ज्यों के त्यों फ़िल्म में ले लिए गए। एक इंटरव्यू में अर्देशिर ने उस वक्त कहा था-‘हमारे पास कोई संवाद लेखक नहीं था, गीतकार नहीं था, संगीतकार नहीं था।’ इन सबकी शुरुआत होनी थी। अर्देशिर ने फ़िल्म के गानों के लिए स्वयं की धुनें चुनीं। फ़िल्म के संगीत में महज तीन वाद्य-तबला, हारमोनियम और वायलिन का इस्तेमाल किया गया। आलम आरा में संगीतकार या गीतकार में स्वतंत्र रूप से किसी का नाम नहीं डाला गया। इस फ़िल्म में पहले पार्श्वगायक बने डब्ल्यू एम. खान। पहला गाना था-‘दे दे खुदा के नाम पर प्यारे, अगर देने की ताकत है।’