Find some पुल लिंग and रत्रीलिंग gender in the following story :-
राजस्थान के एक जिले इंगरपुर में एक गाँव है जिसका नाम है- रास्तापाल। रास्तापाल * विद्यालय को हवा में गीत गूंजते थे। उन गीतों में मातृभूमि के लिए प्यार भरा होता बाइसी गांव में दो अध्यापक रहते थे। एक का नाम जाना भाई खोर जी और दूसरे का नाम सेगा भाई था। ये दोनों अध्यापक विद्यालय में बच्चों को पढ़ाने के साथ साथ देशप्रेम को भी शिक्षा देते थे। इन दिनों हमारा देश गुलाम था। अंग्रेज सरकार भारतवासियों को तरह-तरह से सताती थी। नाना भाई और सेंगा भाई को अंग्रेजों से बड़ी घृणा थो। जब भी अंरोज गाँववालों पर अत्याचार करते. दोनों अध्यापकों का खून खौलने लगता था। वे चाहते थे कि बच्चों से लेकर बूढ़ों तक सभी स्वतंत्रता संग्राम में भाग लें। वे बच्चों को देशभक्तों को कहानी सुनाते थे। अंग्रेजों को भारत से भगाने के नित नए उंग सिखाते थे। अंग्रेज सरकार को इसकी भनक लग गई। बस फिर क्या था। मजिस्ट्रेट दल-बल साहित विद्यालय में आ धमका। उसने डपटकर कहा-"यह विद्यालय अभी बंद करो।" आपके कहने से हम विद्यालय बंद नहीं करेंगे।" सेंगा भाई ने निभीकता से उत्तर तुम इतना सुनना था कि मजिस्ट्रेट आपे से बाहर हो गया। "तुम्हारी इतनी हिम्मत कि मेरी बात टालो?" वह चिल्लाया। "बाँध दो इसे जीप के पीछे।" उसने सिपाहियों को आदेश दिया। इससे पहले कि सिपाहो आगे बढ़ते, नाना भाई गरज उठे, “खबरदार...अगर किसी ने सेगा भाई को हाथ भी लगाया तो..." अभी वह अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाए थे कि सिपाहियों ने उन्हें बंदूक को मूठ से पीट पीटकर अधमरा कर दिया। उसो विद्यालय में कालीबाई नाम की एक छात्रा भी पढ़ली थी। उसको आयु केबल तेरह वर्ष थी। उससे यह दृश्य नहीं देखा गया। वह तेजी से आगे बढ़ी। उसने जोप । का रास्ता रोक लिया। "छोड़ दो...छोड़ दो हमारे गुरु जी को" कहते हुए सिपाहियों से उलझ गई। पुलिस ने उसे पकड़कर पोछे की ओर धकेल दिया। कालोबाई ने हिम्मत नहीं हारी। वह फुरती से उठो और विद्यालय में पड़ी दरौती लेकर जीप को ओर दौड़ो। आनन-फानन में उसने जीप से बंधी रस्सी काट दी। अचानक हुए इस हमले से
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Find some पुल लिंग and रत्रीलिंग gender in the following story :-
राजस्थान के एक जिले इंगरपुर में एक गाँव है जिसका नाम है- रास्तापाल। रास्तापाल * विद्यालय को हवा में गीत गूंजते थे। उन गीतों में मातृभूमि के लिए प्यार भरा होता बाइसी गांव में दो अध्यापक रहते थे। एक का नाम जाना भाई खोर जी और दूसरे का नाम सेगा भाई था। ये दोनों अध्यापक विद्यालय में बच्चों को पढ़ाने के साथ साथ देशप्रेम को भी शिक्षा देते थे। इन दिनों हमारा देश गुलाम था। अंग्रेज सरकार भारतवासियों को तरह-तरह से सताती थी। नाना भाई और सेंगा भाई को अंग्रेजों से बड़ी घृणा थो। जब भी अंरोज गाँववालों पर अत्याचार करते. दोनों अध्यापकों का खून खौलने लगता था। वे चाहते थे कि बच्चों से लेकर बूढ़ों तक सभी स्वतंत्रता संग्राम में भाग लें। वे बच्चों को देशभक्तों को कहानी सुनाते थे। अंग्रेजों को भारत से भगाने के नित नए उंग सिखाते थे। अंग्रेज सरकार को इसकी भनक लग गई। बस फिर क्या था। मजिस्ट्रेट दल-बल साहित विद्यालय में आ धमका। उसने डपटकर कहा-"यह विद्यालय अभी बंद करो।" आपके कहने से हम विद्यालय बंद नहीं करेंगे।" सेंगा भाई ने निभीकता से उत्तर तुम इतना सुनना था कि मजिस्ट्रेट आपे से बाहर हो गया। "तुम्हारी इतनी हिम्मत कि मेरी बात टालो?" वह चिल्लाया। "बाँध दो इसे जीप के पीछे।" उसने सिपाहियों को आदेश दिया। इससे पहले कि सिपाहो आगे बढ़ते, नाना भाई गरज उठे, “खबरदार...अगर किसी ने सेगा भाई को हाथ भी लगाया तो..." अभी वह अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाए थे कि सिपाहियों ने उन्हें बंदूक को मूठ से पीट पीटकर अधमरा कर दिया। उसो विद्यालय में कालीबाई नाम की एक छात्रा भी पढ़ली थी। उसको आयु केबल तेरह वर्ष थी। उससे यह दृश्य नहीं देखा गया। वह तेजी से आगे बढ़ी। उसने जोप । का रास्ता रोक लिया। "छोड़ दो...छोड़ दो हमारे गुरु जी को" कहते हुए सिपाहियों से उलझ गई। पुलिस ने उसे पकड़कर पोछे की ओर धकेल दिया। कालोबाई ने हिम्मत नहीं हारी। वह फुरती से उठो और विद्यालय में पड़ी दरौती लेकर जीप को ओर दौड़ो। आनन-फानन में उसने जीप से बंधी रस्सी काट दी। अचानक हुए इस हमले से