Fit india par niband in hindi
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय खेल दिवस के मौके पर ‘फिट इंडिया अभियान’ की शुरुआत करते हुए सभी को स्वस्थ रहने का संदेश दिया है। ऐसी एक चेतना सदी की शुरुआत से ही देश में खुद-बखुद फैल रही है। स्वयं प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप से इसमें नया जोश आ सकता है। अपने वक्तव्य में प्रधानमंत्री ने फिटनेस को स्वस्थ और समृद्ध जीवन की जरूरी शर्त बताया। आज कई जानलेवा बीमारियां लाइफस्टाइल डिसऑर्डर्स की वजह से हो रही हैं, जिन्हें हम अपने रहन-सहन में बदलाव करके नियंत्रित कर सकते हैं। फिट इंडिया का विस्तार खेलों के दायरे से आगे आम लोगों तक करना होगा। ‘शरीरमाद्यम खलु धर्म साधनम’ और ‘तंदुरुस्ती हजार नियामत’ हमारी संस्कृति के मूलमंत्र रहे हैं।
हमें फिटनेस को अपने परिवार, समाज और देश की सफलता का मानक बनाना होगा। ‘मैं फिट तो इंडिया फिट’ और ‘बॉडी फिट तो माइंड फिट’ भी इसके लिए अच्छे सूत्र साबित हो सकते हैं। इस अभियान का उद्देश्य लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक बनाना है और भारत सरकार के खेल मंत्रालय के अलावा, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, पंचायती राज मंत्रालय तथा ग्रामीण विकास मंत्रालय आपसी तालमेल से इसमें अहम भूमिका निभाएंगे। सामाजिक-आर्थिक विकास के आधुनिक मॉडल ने जीवन में सुविधाएं बढ़ाई हैं लेकिन मनुष्य के स्वास्थ्य पर भारी संकट भी पैदा कर दिया है। कॉर्डियोवैस्कुलर बीमारियों, मनोरोगों और कुछ कैंसरों की जड़ भी रहन-सहन के तरीकों में खोजी गई है। इनसे बचाव के लिए लोग व्यायाम, खाने-पीने में संयम और अन्य शारीरिक गतिविधियों पर जोर दे रहे हैं लेकिन दुर्भाग्यवश भारत इस मामले में काफी पीछे है।
पता चला है कि महज 10 प्रतिशत भारतीय ही कसरत करते हैं। हर दो में से एक भारतीय शारीरिक रूप से कम सक्रिय है। लोगों का समय टीवी देखने में ज्यादा गुजरता है। भारतीय चिकित्सा संघ के एक अध्ययन के मुताबिक भारत में 3.52 करोड़ भारतीय स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर कोई शारीरिक गतिविधि नहीं करते। 70 फीसदी युवा रोज व्यायाम नहीं करते और 62.5 प्रतिशत अपने खानपान पर ध्यान नहीं देते। जाहिर है, अगर देश को फिट रखना है तो यह मिजाज बदलना होगा। फिटनेस को एक अभियान का रूप देने के लिए स्कूल-कॉलेजों और सरकारी, गैर सरकारी, सभी तरह के संस्थानों को आगे आना होगा। स्कूलों में तो खेलकूद प्राय: अनिवार्य है लेकिन कॉलेजों-विश्वविद्यालयों में इसे और बढ़ावा देने की जरूरत है। दफ्तरों और कारखानों को अपनी कार्यप्रणाली निर्धारित करते हुए फिटनेस के फैक्टर को ध्यान में रखना होगा। कुछ निजी संस्थानों में जिम और खेलकूद की व्यवस्था है, पर उनमें लोगों की भागीदारी बहुत मामूली है। सरकार इसके लिए कोई आदेशात्मक व्यवस्था बनाए, इससे पहले लोगों को अपने स्तर पर चौकस होना होगा।