flowers ki atmakatha 300 words
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आपने अब तक तरह-तरह के फूल देखे होंगे । कितने-कितने सुंदर हैं ! वृंत पर झूमते हुए देखकर उन्हें तोड़ने तथा अपने पास तरो-ताजा रखने के लिए हाथ उनकी ओर बढ़ जाता है । किंतु मैं उन फूलों में से नहीं हूँ । मुझे आप आसानीसे नहीं तोड़ सकते ।
मैं आपकी पहुँच से बहुत दूर हूँ । में धरती पर उत्पन्न नहीं होता । मेरा पौधा जल में उत्पन्न होता है, इसलिए मेरा एक नाम ‘जलज’ भी है; लेकिन संसार में मैं ‘कमल’ के नाम से प्रसिद्ध हूँ । संस्कृत में पद्म, पंकज, पंकरूह, सरसिज, सरोज, जलजात, नीरज, वारिज, अंबुज, अरविंद, तामरस, इंदीवर, कुवलय, वनज आदि मेरे नाम है । फारसी में मुझे ‘नीलोफर’ और अंग्रेजी में ‘लोटस’ कहते हैं ।
मैं संसार का लोकप्रिय फूल हूँ । मैं भारत का राष्ट्रीय पुष्प हूँ । मेरा तना कमलिनी, नलिनी, पद्मिनी आदि नामों से प्रसिद्ध है । मैं भारत के सभी उष्ण भागों में तथा ईरान से लेकर ऑस्ट्रेलिया तक पाया जाता हूँ । मेरा रंग श्वेत, गुलाबी या नीला होता है ।
मेरे पत्ते लगभग गोल, ढाल जैसे होते हैं । पत्तों के लंबे वृंतों और नसों से एक प्रकार का रेशा निकाला जाता है । इससे मंदिरों के दीपों की बत्तियाँ बनाई जाती हैं । इससे वस्त्र भी बनाए जाते हैं । इन वस्त्रों के धारण करने से अनेक प्रकार के रोग दूर हो जाते हैं ।
मेरे कमलनाल लंबे, सीधे और खोखले होते हैं । वे गहरे जल के नीचे कीचड़ में चारों ओर फैल जाते हैं । तनों की गाँठों पर अनेक जड़ें निकलती हैं । मेरे तनों को ‘मृणाल’ कहते हैं । मैं पानी में कभी नहीं डूबता । ज्यों-ज्यों पानी बढ़ता जाता है, त्यों-त्यों मेरा तना भी बढ़ता जाता है । मेरे इस प्रकार के जीवन से लोगों को संसार में मेरे जैसा जीवन व्यतीत करने की शिक्षा मिलती है । इस शिक्षा के प्रभाव से वे सांसारिक माया-मोह से ऊपर उठकर अपना जीवन व्यतीत करते हैं ।
please follow me for more answers thank you
मैं आपकी पहुँच से बहुत दूर हूँ । में धरती पर उत्पन्न नहीं होता । मेरा पौधा जल में उत्पन्न होता है, इसलिए मेरा एक नाम ‘जलज’ भी है; लेकिन संसार में मैं ‘कमल’ के नाम से प्रसिद्ध हूँ । संस्कृत में पद्म, पंकज, पंकरूह, सरसिज, सरोज, जलजात, नीरज, वारिज, अंबुज, अरविंद, तामरस, इंदीवर, कुवलय, वनज आदि मेरे नाम है । फारसी में मुझे ‘नीलोफर’ और अंग्रेजी में ‘लोटस’ कहते हैं ।
मैं संसार का लोकप्रिय फूल हूँ । मैं भारत का राष्ट्रीय पुष्प हूँ । मेरा तना कमलिनी, नलिनी, पद्मिनी आदि नामों से प्रसिद्ध है । मैं भारत के सभी उष्ण भागों में तथा ईरान से लेकर ऑस्ट्रेलिया तक पाया जाता हूँ । मेरा रंग श्वेत, गुलाबी या नीला होता है ।
मेरे पत्ते लगभग गोल, ढाल जैसे होते हैं । पत्तों के लंबे वृंतों और नसों से एक प्रकार का रेशा निकाला जाता है । इससे मंदिरों के दीपों की बत्तियाँ बनाई जाती हैं । इससे वस्त्र भी बनाए जाते हैं । इन वस्त्रों के धारण करने से अनेक प्रकार के रोग दूर हो जाते हैं ।
मेरे कमलनाल लंबे, सीधे और खोखले होते हैं । वे गहरे जल के नीचे कीचड़ में चारों ओर फैल जाते हैं । तनों की गाँठों पर अनेक जड़ें निकलती हैं । मेरे तनों को ‘मृणाल’ कहते हैं । मैं पानी में कभी नहीं डूबता । ज्यों-ज्यों पानी बढ़ता जाता है, त्यों-त्यों मेरा तना भी बढ़ता जाता है । मेरे इस प्रकार के जीवन से लोगों को संसार में मेरे जैसा जीवन व्यतीत करने की शिक्षा मिलती है । इस शिक्षा के प्रभाव से वे सांसारिक माया-मोह से ऊपर उठकर अपना जीवन व्यतीत करते हैं ।
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