Footpath par sotee loge ke jivan par aalekh
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आज भी फुटपाथों पर सोते लोग देखने को मिल जाते हैं। यद्यपि भारत अपनी आजादी की साठवीं सालगिरह मनाकर फूला नहीं समा पा रहा, पर इन अभागों को क्या पता कि आजादी किस चिड़िया का नाम है। इन्हें तो किसी प्रकार का परिवर्तन दिखाई नहीं देता ये तो दो जून की रोटी के लिए सारे दिन खटते हैं, किसी तंदूर पर सस्ती रोटी खाते हैं और रात को फुटपाथ पर सोकर रात काटते हैं। देश के नेता गरीबी मिटाने के लिए लंबे-चैड़े भाषण अवश्य देते हैं, पर उन्हें पता ही नहीं कि गरीबी का जीवन नारकीय होता है। कभी-कभी तो वे अभिजात वर्ग की लंबी-चैड़ी चमकती कार के नीचे कुचलकर अपना दम तोड़ देते हैं। अपराधी पैसे और रूतबे के बल पर साफ बच निकलते हैं। फुटपाथ पर सोते लोगों की ओर क्या कभी किसी सरकार या समाज के तथाकथित ठेकेदारों का ध्यान जाएगा? यह प्रश्न अभी तक अनुतरित है।
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