Science, asked by rko405300, 1 year ago

France ke Rajya Kranti ka kya Arth hai​

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Answered by tathamand2005
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बेसिल दिवस : १४ जुलाई १७८९

फ्रांसीसी क्रांति ] / रेवोलुस्योँ फ़्राँसेज़ ; 1789-1799) फ्रांस के इतिहास की राजनैतिक और सामाजिक उथल-पुथल एवं आमूल परिवर्तन की अवधि थी जो 1789 से 1799 तक चली। बाद में, नेपोलियन बोनापार्ट ने फ्रांसीसी साम्राज्य के विस्तार द्वारा कुछ अंश तक इस क्रांति को आगे बढ़ाया। क्रांति के फलस्वरूप राजा को गद्दी से हटा दिया गया, एक गणतंत्र की स्थापना हुई, खूनी संघर्षों का दौर चला, और अन्ततः नेपोलियन की तानाशाही स्थापित हुई जिससे इस क्रांति के अनेकों मूल्यों का पश्चिमी यूरोप में तथा उसके बाहर प्रसार हुआ। इस क्रान्ति ने आधुनिक इतिहास की दिशा बदल दी। इससे विश्व भर में निरपेक्ष राजतन्त्र का ह्रास होना शुरू हुआ, नये गणतन्त्र एव्ं उदार प्रजातन्त्र बने।

आधुनिक युग में जिन महापरिवर्तनों ने पाश्चात्य सभ्यता को हिला दिया उसमें फ्रांस की राज्यक्रांति सर्वाधिक नाटकीय और जटिल साबित हुई। इस क्रांति ने केवल फ्रांस को ही नहीं अपितु समस्त यूरोप के जन-जीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया। फ्रांसीसी क्रांति को पूरे विश्व के इतिहास में मील का पत्थर कहा जाता है। इस क्रान्ति ने अन्य यूरोपीय देशों में भी स्वतन्त्रता की ललक कायम की और अन्य देश भी राजशाही से मुक्ति के लिए संघर्ष करने लगे। इसने यूरोपीय राष्ट्रों सहित एशियाई देशों में राजशाही और निरंकुशता के खिलाफ वातावरण तैयार किया।

अनुक्रम

1 क्रांति के कारण

1.1 राजनीतिक परिस्थितियाँ

1.2 सामाजिक परिस्थितियाँ

1.3 आर्थिक परिस्थितियाँ

1.4 विचारकों/दार्शनिकों की भूमिका

1.4.1 मॉण्टेस्क्यू

1.4.2 वाल्टेयर

1.4.3 रूसो

1.4.4 अन्य दार्शनिक

1.5 तात्कालिक कारण

2 क्रांति के विभिन्न चरण

2.1 प्रथम चरण (1789-1792)

2.1.1 मानवाधिकारों की सीमाएं

2.1.2 चर्च पर नियंत्रण

2.1.3 संविधान निर्माण

2.2 द्वितीय चरण (1792-94)

2.2.1 नेशनल कन्वेंशन और आतंक का राज्य

2.3 तृतीय चरण (1794-99 ई)

2.4 चतुर्थ चरण (1799-1814 ई)

3 क्रांति का प्रभाव

4 फ्रांसीसी क्रांति की प्रकृति

4.1 क्रांति का मध्यवर्गीय स्वरूप

4.2 विश्वव्यापी स्वरूप

4.3 क्रांति सुनियोजित नहीं थी

4.4 'सामाजिक क्रांति' के रूप में

4.5 अधिनायकवादी स्वरूप

4.6 प्रगतिशील क्रांति के रूप में

5 फ्रांस में ही क्रांति क्यों?

6 इन्हें भी देखें

6.1 संबंधित पेज

6.2 फ्रांसीसी इतिहास में अन्य क्रांतियां या विद्रोह

7 सन्दर्भ

7.1 उद्धृत कार्य

8 ऐतिहासिक युग

9 बाहरी सम्बन्ध

क्रांति के कारण

राजनीतिक परिस्थितियाँ

फ्रांस में निरंकुश राजतंत्र था जो राजत्व के दैवी सिद्धान्त पर आधारित था। इसमें राजा को असीमित अधिकार प्राप्त थे और राजा स्वेच्छावादी था। लुई 14वें के शासनकाल में (1643-1715) निरंकुशता अपनी पराकाष्ठा पर थी। उसने कहा- "मैं ही राज्य हूँ"। वह अपनी इच्छानुसार कानून बनाता था। उसने शक्ति का अत्यधिक केन्द्रीयकरण राजतंत्र के पक्ष में कर दिया। कूटनीति और सैन्य कौशल से फ्रांस का विस्तार किया। इस तरह उसने राजतंत्र को गंभीर पेशा बनाया।

लुई 14वें ने जिस शासन व्यवस्था का केन्द्रीकरण किया था उसने योग्य राजा का होना आवश्यक था किन्तु उसके उत्तराधिकारी लुई १५वां एवं लूई १६वाँ पूर्णतः अयोग्य थे। लुई 15वां (1715-1774) अत्यंत विलासी, अदूरदर्शी और निष्क्रिय शासक था। आस्ट्रिया के उत्तराधिकार युद्ध एवं सप्तवर्षीय युद्ध में भाग लेकर देश की आर्थिक स्थिति को भारी क्षति पहुँचाई। इसके बावजूद भी वर्साय का महल विलासिता का केन्द्र बना रहा। उसने कहा कि मेरे बाद प्रलय होगी।

क्रांति की पूर्व संध्या पर लुई 16वें (1774 - 93) का शासक था। वह एक अकर्मण्य और अयोग्य शासक था। उसने भी स्वेच्छाचारित और निरंकुशता का प्रदर्शन किया। उसने कहा कि "यह चीज इसलिए कानूनी है कि यह मैं चाहता हूं।" अपने एक मंत्री के त्यागपत्र के समय उसने कहा कि-काश! मैं भी त्यागपत्र दे पाता। उसकी पत्नी मेरी एन्टोनिएट का उस पर अत्यधिक प्रभाव था। वह फिजूलखर्ची करती थी। उसे आम आदमी की परेशानियों की कोई समझ नहीं थी। एक बार जब लोगों का जुलूस रोटी की मांग कर रहा था तो उसने सलाह दी कि यदि रोटी उपलब्ध नहीं है तो लोग केक क्यों नहीं खाते।

इस तरह देश की शासन पद्धति पूरी तरह नौकरशाही पर निर्भर थी। जो वंशानुगत थी। उनकी भर्ती तथा प्रशिक्षण के कोई नियम नहीं थे और इन नौकरशाहों पर भी नियंत्रण लगाने वाली संस्था मौजूद नहीं थी। इस तरह शासन प्रणाली पूरी तरह भ्रष्ट, निरंकुश, निष्क्रिय और शोषणकारी थी। व्यक्तिगत कानून और राजा की इच्छा का ही कानून लागू होता था। फलतः देश में एक समान कानून संहिता का अभाव तथा विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न कानूनों का प्रचलन था। इस अव्यवस्थित और जटिल कानून के कारण जनता को अपने ही कानून का ज्ञान नहीं था। इस अव्यवस्थित निरंकुश तथा संवेदनहीन शासन तंत्र का अस्तित्व जनता के लिए कष्टदायी बन गया। इन उत्पीड़क राजनीतिक परिस्थितियों ने क्रांति का मार्ग प्रशस्त किया। फ्रांस की अराजकपूर्ण स्थिति के बारें में यू कहा जा सकता है कि "बुरी व्यवस्था का तो कोई प्रश्न नहीं, कोई व्यवस्था ही नहीं थी।"

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