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कोरोना के सकारात्मक प्रभाव :लॉकडाउन से दिखे पर्यावरण में सुधार के संकेत, सड़को पर चहलकदमी ...
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5 जून विश्व पर्यावरण दिवस है। पर्यावरण की चिंता करने वाले और उसे लेकर अपने स्तर पर लगातार प्रयास करने वाले व्यक्तियों और संस्थाओं के लिए लॉक डाउन का यह समय आंतरिक खुशी प्रदान करने वाला रहा है। प्रकृति साफ हुई और नदियां, समद्र, जीव-जंतु सभी के जीवन में एक हरियाली लौटी है।
हालांकि इस हरियाली और राहत की एक कीमत भी मनुष्य सभ्यता ने चुकाई है। एक महामारी के चलते, जिसका आज भी इलाज नहीं मिल पाया है और जिसने पूरी दुनिया में मृत्यु का तांडव मचाया हुआ है हैरान करता है। इस महामारी के चलते सब ठप हुआ है, लॉक डाउन ने दुनिया भर के करोड़ों लोगों को घर में कैद करके रख दिया है।
यकीनन इस शांति ने हमारे पर्यावरण को बदला है, लेकिन इसकी कीमत से समझौता नहीं किया जा सकता। सवाल यह है कि क्या प्रदूषण को मनुष्य महामारी के बहाने नहीं बल्कि अपने स्तर पर, आदतों द्वारा और उसका सरंक्षण करते हुए नहीं बचा सकता। क्या पर्यावरण को बचाने के लिए प्रदूषण पर हमेशा के लिए लॉक डाउन नहीं लग सकता।
भले ही देश भर में कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए लगे लॉकडाउन ने अर्थव्यवस्था व सामाजिक ढांचे को तहस-नहस करने का काम किया हो, लेकिन मौजूदा देशव्यापी लॉकडाउन का सबसे सकारात्मक प्रभाव वायु प्रदूषण में नाटकीय ढंग से आई कमी है।
वैश्विक आंकड़े बता रहे हैं कि पिछले 60 वर्षों में किए गए तमाम प्रयासों और जलवायु परिवर्तन के असंख्य वैश्विक समझौतों के बावजूद पर्यावरणीय स्थिति में वो सुधार नहीं हो पाया था जो पिछले 60 दिनों में वैश्विक लॉकडाउन के चलते हुआ है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का एक अनुमान है कि वायु प्रदूषण के चलते हर साल करीब 70 लाख मौतें होती हैं। लॉकडाउन के कारण जहरीली गैसों के उत्सर्जन में अस्थाई कमी आना निश्चित रूप से एक बड़ी राहत है, लेकिन यह कमी भारत जैसे देश के लिए कोई स्थायी समाधान नहीं है।
पांच खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लिए देश जिस लक्ष्य को लेकर चला है वो कार्बन उत्सर्जन को बढ़ावा दिए बगैर हासिल नहीं हो सकता दूसरी तरफ हम बिना सांस लिए भी आगे नहीं बढ़ सकते।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के डिपार्टमेंट ऑफ पब्लिक हेल्थ एंड एनवायरनमेंट की डायरेक्टर डॉक्टर मारिया नीरा के मुताबिक, 'अगर देशों में प्रदूषण का उच्च स्तर होता है तो कोविड-19 से उनकी लड़ाई में इस पहलू पर भी विचार करना जरूरी है। ऐसा इसलिए है क्योंकि वायु प्रदूषण के चलते कोविड-19 मरीजों की मृत्यु दर में इजाफा होने की आशंका है।'
अमेरिका में 90 प्रतिशत मौत उन शहरों में हुई जहां वायु प्रदूषण अधिक है। इटली में हुए इस तरह के शोध में यह बात सामने आई है कि जिन जगहों पर वायु प्रदूषण अधिक है वहां कोरोना के चलते होने वाली मौतों में इजाफा हुआ है।
इटली के उत्तरी भाग में वायु प्रदूषण अन्य इलाकों की अपेक्षा काफी ज्यादा है और यहां कोरोना से मरने वालो की संख्या भी करीब तीन गुना ज्यादा है।
इटली के उत्तरी भाग में कोविड-19 की मृत्युदर 12 फीसदी है, जबकि इसके अन्य हिस्सों में मृत्युदर 4.5 फीसदी ही है। हम भूल जाते हैं दुनिया के 30 सबसे प्रदूषित शहरों में से 21 शहर तो भारत के ही हैंं इनमें बहुत से शहरों में हवा की गुणवत्ता, विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय मानकों से दस गुना से भी ज्यादा खराब है।
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