Full poem by harivansh rai bachaan 'bhool gaya hai kyun insaan
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भूल गया हैं क्यों इनसान
भूल गया हैं क्यों इनसान !
सबकी है मिट्टी की काया
सब पर नभ की निर्मल छाया
यहाँ नहीं कोई आया है
ले विशेष वरदान
भूल गया हैं क्यों इनसान !
धरती ने मानव उपजाए
मानव ने ही देश बनाए
बहु देशों में बसी हुई है
एक धरा संतान
भूल गया हैं क्यों इनसान !
देश अलग है
देश अलग हो
वेश अलग है
वेश अलग हो
मानव का मानव से लेकिन
अलग न अंतर-प्राण
भूल गया हैं क्यों इनसान !
भूल गया हैं क्यों इनसान !
सबकी है मिट्टी की काया
सब पर नभ की निर्मल छाया
यहाँ नहीं कोई आया है
ले विशेष वरदान
भूल गया हैं क्यों इनसान !
धरती ने मानव उपजाए
मानव ने ही देश बनाए
बहु देशों में बसी हुई है
एक धरा संतान
भूल गया हैं क्यों इनसान !
देश अलग है
देश अलग हो
वेश अलग है
वेश अलग हो
मानव का मानव से लेकिन
अलग न अंतर-प्राण
भूल गया हैं क्यों इनसान !
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yes it is a nice poem I love this poem
Explanation:
please mark me brainlist
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