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कोप
रहे है
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निनलिखित प्रत्येक काव्याशा की जान
सप्रसंग व्याख्या ही जास्की जि
रुद्ध
कोष है, गुब्धताप
अंगना- अंग पर लिपटे भी
ऑवक अंक पर
घमी. वज्र-
गर्जन से
बादी।
जस्त नयन-मुख
ढोप
जीर्ण बाहु.
शीर्ण
तुझे बुलाता कृषक अधीर,
ॐ विप्लव के वीर।
चूस
हार-मात्र
ही
ब
गरीर,
जिया है। उसका सार,
है आधार
जीवन के पारावार !
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