fursat ke pal paragraph on Hindi
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एक दोस्त ने पूछा- ‘इस हफ्ते के अंत में तुम कहां जा रहे हो?’ दूसरे ने कहा- ‘पता नहीं, लेकिन कहीं निकल जाऊंगा यों ही! वैसे तो कभी काम से फुर्सत ही नहीं मिल पाता है, लेकिन इस बार तय कर लिया है कि कुछ वक्त अपने उस पुराने प्रेम के लिए निकालूंगा और आजाद होकर जम के फोटो खीचूंगा। और तुम कहां जा रहे हो?’ पहले दोस्त ने जवाब दिया- ‘मैं तो घर में ही रहूंगा, लेकिन अपनी पसंद की कविताएं पढ़ूंगा। काफी दिन हो गए किताब लाए। कमबख्त अब जाकर कुछ दिन की छुट्टी मिली है।’
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मेट्रो में अपने सहयात्री की ये बातें सुन कर मैं भी सोचने लगा कि इस बार छुट्टी में अपने किस प्रेम को फिर से पाना चाहूंगा! बचपन से लेकर कुछ लोगों, जगहों से लेकर कई किताबे पढ़ने जैसी दूसरी रुचियों की भी याद आ रही थी। यों ये बातें सुनने में काफी सामान्य लगती हैं, लेकिन इसके गहरे निहितार्थ हैं। इसका मनोविज्ञान और भी दिलचस्प है। आज की गलाकाट प्रतिस्पर्धा में यह जरूरी नहीं कि हरेक व्यक्ति को वही रोजगार मिले, जिसमें उसकी रुचि हो। व्यक्ति अपनी आजीविका चलाने के लिए अपनी रुचि के साथ समझौता कर लेता है। अब इससे उसकी कार्यक्षमता पर क्या प्रभाव पड़ता होगा, यह दूसरी बात है........!