'g' ka maan gyat karne ka sutr paricalit kijiye
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न्यूटन द्वारा गुरुत्वाकर्षण के नियम का प्रतिपादन होने के बाद ही गुरुत्व नियतांक G का मान ज्ञात करने की समस्या ने वैज्ञानिकों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया। इसका कारण यह था कि यह प्रकृति के मूल नियतांको (fundamental constants) में से एक है और देश, काल तथा परिस्थिति से सर्वथा निरपेक्ष है। इसलिए इसे सार्वत्रिक नियतांक (universal constant) कहते हैं। साथ ही, यह पृथ्वी की संहति से भी संबंधित किया जा सकता है (देखें समीकरण २)। अत: पृथ्वी की संहति एवं घनत्व ज्ञात करने के लिए भी इसके मान के ज्ञान की आवश्यकता पड़ती है। यह निम्नलिखित विवेचन से स्पष्ट हो जाएगा :
समीकरण (३) और (४) में तुलना करने पर
g = G M/r2
किंतु पृथ्वी की मात्रा (पृथ्वी को पूर्णत: गोल मानने पर)
M = (4/3) p r3 D
जहाँ D पृथ्वी का माध्य घनत्व (mean density) है।
g = G (4/3) p r3 D /r2= (4/3) G p r D
अर्थात् G. D. = 3 g / (4 p r)
इस सूत्र से यह स्पष्ट है कि G या D में से एक का मान ज्ञात करने के लिये दूसरे का मान ज्ञात होना चाहिए। अतएव पृथ्वी का घनत्व ज्ञात करने से पूर्व G का ठीक मान ज्ञात कर सकने की विधियों की ओर वैज्ञानिकों का ध्यान आकृष्ट होना स्वाभाविक ही था।
गुरुत्व नियतांक का मान ज्ञात करने के लि, किए जानेवाले वैज्ञानिक प्रयासों को हम तीन कोटियों में विभक्त कर सकते हैं :
(1). पृथ्वी द्वारा किसी पिंड पर ठीक नीचे की ओर लगने वाले गुरुत्वाकर्षण बल की उस पिंड पर किसी भारी संहतिवाले प्राकृतिक पिंड, (जैसे पर्वत आदि) द्वारा लगनेवाले पार्श्विक (lateral) आकर्षण बल के साथ तुलना करके,
(2). पृथ्वी द्वारा किसी पिंड पर लगने वाले आकर्षण बल की किसी अन्य कृत्रिम पिंड द्वारा लगने वाले ऊर्ध्वाधर आर्कषण बल के साथ (किसी तुला द्वारा) तुलना करके और
(3). दो कृत्रिम पिंडों के बीच कार्यरत पारस्परिक आकर्षण बल की गणना करके