(ग) भारतीय कपड़ा का निर्यात प्रारम्भिक शताब्दी में क्यों
घट गया? कोई तीन कारण बताइए।
Answers
Answer:
भारत में कपास उद्योगों के सामने प्रमुख समस्याएं हैं।
(i) ब्रिटेन से आयातित सस्ते वस्त्रों के साथ प्रतिस्पर्धा करना कठिन था। (ii) ज्यादातर देशों में, सरकारों ने आयात पर भारी शुल्क लगाकर औद्योगीकरण का समर्थन किया। इसने प्रतिस्पर्धा और संरक्षित शिशु उद्योगों को समाप्त कर दिया।
19वीं सदी की शुरुआत से ही भारत में कपड़ा व्यापार गिरने लगा था। 19वीं सदी की शुरुआत में भारत से विदेशों में होने वाले कपड़े के निर्यात में कमी आने लगी। सन 1811-12 में भारत से निर्यात होने वाले सूती कपड़े में जो हिस्सेदारी 33% थी वो 1850-51 तक आते-आते केवल 10% ही रह गई।
Answer:
उन्नीसवीं सदी की शुरुआत से ही भारत से कपड़ों का निर्यात घटने लगा। 1811 – 12 में भारत से होने वाले निर्यात में 33% सूती कपड़ा हुआ करता था जो 1850 – 51 में केवल 3% रह गया।
Explanation:
ब्रिटेन के उद्योगपतियों के दबाव के कारण वहाँ की सरकार ने ब्रिटेन में सीमा शुल्क लगा दिया ताकि आयात को रोका जा सके। ईस्ट इंडिया कम्पनी पर भी इस बात के लिए दबाव डाला गया कि वह ब्रिटेन में बनी चीजों को भारत के बाजारों में बेचे। अठारहवीं सदी के अंत तक भारत में सूती कपड़ों का आयात नगण्य था। लेकिन 1850 आते-आते 31% आयात सूती कपड़े का था। 1870 के दशक तक यह अंश बढ़कर 70% हो गया।
मैनचेस्टर की मिलों में बना कपड़ा, भारत के हथकरघों से बने कपड़े की तुलना में सस्ता था। इसलिए बुनकरों का व्यवसाय गिरने लगा। इसलिए 1850 का दशक तक भारत में सूती कपड़े के अधिकांश केंद्रों में भारी मंदी आ गई।
1860 के दशक में संयुक्त राज्य अमेरिका में गृह युद्ध शुरु होने के कारण वहाँ से ब्रिटेन को मिलने वाले कपास की सप्लाई बंद हो चुकी थी। इसके परिणामस्वरूप भारत से कपास ब्रिटेन को निर्यात होने लगा। इसका असर यह हुआ कि भारत के बुनकरों के लिए कच्चे कपास की भारी कमी हो गई।
उन्नीसवीं सदी के अंत तक भारत में सूती कपड़े के कारखाने खुलने लगे। भारत के पारंपरिक सूती कपड़ा उद्योग के लिए यह किसी आघात से कम न था।