) गंगा की स्वच्छता के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए , लोगों को जागरूक करने हेतु उचित
नारों का प्रयोग करते हुए पोस्टर तैयार कीजिये।
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गंगा स्वच्छता एवं पुनर्जीवनः अतीत व भविष्य
गंगा का स्थान हर भारतीय के दिल में खास है। अद्वितीय सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व रखने वाली गंगा देश की सबसे पवित्र नदी है। 2500 किलोमीटर से अधिक लम्बा सफर तय करने वाली गंगा को लोग उसके उद्गम स्थल गंगोत्री ग्लेशियर से लेकर बांग्लादेश के सुंदरवन डेल्टा तक प्रयोग करते और पूजते हैं। गंगा बेसिन में देश के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा उत्पन्न होता है और यह देश का महत्त्वपूर्ण पर्यावरण और आर्थिक संसाधन है। अपनी लम्बी यात्रा के दौरान गंगा नदी मैदानी इलाकों की विशाल भूमि को समृद्ध करती है और इसके सहारे लगभग 50 प्रमुख शहरों और सैकड़ों छोटे शहरों का जीवन चलता है
.ऊँचे इलाकों में गंगा की सहायक नदियाँ देश की ऊर्जा आपूर्ति को पूरा करने के लिये पर्याप्त पनबिजली उत्पन्न करती हैं और नीचे की ओर गंगा माल और जन साधारण को जलमार्ग प्रदान करती है। भारत में यह अकेली नदी घाटी (बेसिन) है जोकि संसाधनों से सम्पन्न है और अभी भी इसमें अतिरिक्त जल की बड़ी मात्रा उपलब्ध है। लेकिन दुर्भाग्य से दशकों से गंगा जैसी विशाल नदी लापरवाही और दुर्व्यवहार से जूझ रही है जिसका बहुत बड़ा कारण बढ़ती जनसंख्या है। गंगा के उल्लेख मात्र से मन में परस्पर विरोधाभासी छवियाँ सी उभरती हैं। एक ओर यह पवित्रता का प्रतीक है तो दूसरी ओर इसका पानी प्रदूषित, स्थिर और गंदगी व प्लास्टिक से भरा हुआ है। भारी प्रदूषण का भार, सूखे के मौसम में व्यापक सिंचाई के लिये अत्यधिक पृथक्करण, पानी की बढ़ती माँग और मुख्य धारा और सहायक नदियों को मोड़ा जाना, अवरुद्ध किया जाना, इससे गंगा पर बहुत असर पड़ता है। इसका परिणाम यह होता है कि इसके सहारे चलने वाला लाखों लोगों का जीवन और कामकाज प्रभावित होता है। (रुहल, 2015) इस प्रकार हम यह सोचने को मजबूर होते हैं कि किस तरह दुनिया की सबसे ताकतवर नदियों में से एक नदी कचरे का भंडार बन गई है।
नदियों को प्रभावित करने वाले मुद्दे असंख्य हैं और उन्हें समझना बिल्कुल सरल नहीं है। इनमें अक्सर अनुपचारित जल-मल और औद्योगिक कचरा भरा होता है और बड़े पैमाने पर भूमिगत जल निकासी के साथ-साथ इन्हें अवरुद्ध किया जाता है। इन्हें तमाम तरह से प्रदूषित किया जाता है। इस प्रदूषित पानी का असर उन लोगों पर पड़ता है जोकि सीमा पार नदी तट पर रहते हैं। इसके अतिरिक्त नदी घाटी में बाढ़ और सूखा एक सामान्य समस्या है जिसका असर फसलों, मवेशियों और बुनियादी ढाँचे पर पड़ता है। हिमनदों के पीछे हटने, आइस मास के कम होने, बर्फ के जल्दी पिघलने और सर्दियों में धारा प्रवाह के बढ़ने से जलवायु पर दबाव बढ़ रहा है। इससे पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन पहले से ही हिमालय की बर्फ को प्रभावित कर रहा है जिसका असर दीर्घकाल में गंगा पर भी दिखाई देगा।
नदी श्रृंखला को जगह-जगह पर पानी की गुणवत्ता चुनौती देती है। (i) गंगोत्री से ऋषिकेश तक गंगा में अनेक छोटी और तेजी से बहने वाली सहायक नदियाँ मिलती हैं लेकिन यहाँ तक गंगा मानव गतिविधियों से कम, और पनबिजली की कुनियोजित बाँध परियोजनाओं से ज्यादा प्रभावित होती है जिनके कारण अत्यधिक संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र और जैव-विविधता बर्बाद हो रही है। (ii) इसके बाद गंगा का मध्य विस्तार यानि ऋषिकेश से कानपुर, इलाहाबाद, पटना और फरक्का का जल मार्ग पृथक और सबसे अधिक प्रदूषित है जिसका कारण घरेलू, म्युनिसिपल, कृषि और औद्योगिक अपशिष्ट है। (जबकि नीचे की ओर बहने पर प्रदूषण का स्तर कम होता है)। इससे पूर्वी उत्तर प्रदेश और उत्तरी बिहार के मैदानी इलाकों में भारी बाढ़ भी आती है। (iii) गंगा के आखिरी विस्तार में सुंदरवन आते हैं जो दुनिया के सबसे बड़े सक्रिय डेल्टा का हिस्सा और यहाँ नदी के पथ में जबरदस्त बदलाव आते हैं। इसमें लवणता आती है और ज्वारीय तूफान भी। यहाँ गंगा नदी तट देशों के बीच जल बँटवारे के संघर्ष का विषय बन जाती है। (आईआईटीसीए 2010)