Hindi, asked by roshanlalroshanlal39, 6 months ago

गूंगा का शुद्ध शब्द​

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Answered by HridaySaha
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Explanation:

लिखने की रीति को वर्तनी या अक्षरी कहते हैं। इसे 'हिज्जे' भी कहा जाता है।

उच्चारण

वर्तनी का सीधा संबंध उच्चारण से होता है। हिन्दी में जो बोला जाता है वही लिखा जाता है। यदि उच्चारण अशुद्ध होगा तो वर्तनी भी अशुद्ध होगी। प्रायः अपनी मातृभाषा या बोली के कारण तथा व्याकरण संबंधी ज्ञान की कमी के कारण उच्चारण में अशुद्धियाँ आ जाती हैं जिसके कारण वर्तनी में भी अशुद्धियाँ आ जाती हैं।

संस्कृत भाषा के मूल श्लोकों को अदधृत करते समय संयुक्ताक्षर पुरानी शैली से भी लिखे जा सकेंगे। जैसे:संयुक्त, चिह्न, विद्या, चच्चल, विद्वान, वृद्ध, द्वितीय, बुद्धि आदि। किंतु यदि इन्हें भी उपर्युक्त नियमों के अनुसार ही लिखा जाए तो कोई आपत्ति नहीं होगी।

कारक चिह्न

हिन्दी के कारक चिह्न सभी प्रकार के संज्ञा शब्दों में प्रातिपदिक से पृथक् लिखे जाएँ। जैसे: राम को, राम से, स्त्री से, सेवा में आदि। सर्वनाम शब्दों में ये चिह्न प्रातिपदिक के साथ मिलाकर लिखे जाएँ। जैसे- तूने, आपने, तुमसे, उसने, उससे आदि।

सर्वनामों के साथ यदि दो कारक चिह्न हों तो उनमें से पहला मिलाकर और दूसरा पृथक् लिखा जाए। जैसे- उसके लिए, इसमें से।

संयुक्त क्रिया पदों में सभी अंगीभूत क्रियाएँ पृथक-पृथक् लिखी जाएँ। जैसे- पढ़ा करता है, आ सकता है, जाया करता है, खाया करता है, जा सकता है, कर सकता है, खेला करेगा, घूमता रहेगा, आदि।

हाइफ़न (योजक चिह्न)

हाइफ़न का विधान स्पष्टता के लिए किया गया है।

द्वंद्व समास में पदों के बीच हाइफ़न रखा जाए। राम-लक्ष्मण, शिव-पार्वती संवाद, देख-रेख चाल-चलन हँसी-मजाक, लेन-देन, खेलना-कूदना आदि।

सा, जैसा आदि से पूर्व हाइफ़न रखा जाए। जैसे: तुम-सा, राम- जैसा, चाकू-से तीखे।

तत्पुरुष समास में हाइफ़न का प्रयोग केवल वहीं किया जाए जहाँ उसके बिना भ्रम होने की संभावना हो, अन्यथा नहीं। जैसे-भू-तत्व। सामान्यत: तत्पुरुष समास में हाइफ़न लगाने की आवश्यकता नहीं है। जैसे रामराज्य, राजकुमार, गंगाजल, ग्रामवासी, आत्महत्या आदि।

इसी तरह यदि 'अ-नख' (बिना नख का) समस्त पद में हाइफ़न न लगाया जाए तो उसे 'अनख' पढ़े जाने से 'क्रोध' का अर्थ निकल सकता है। अ-नति (नम्रता का अभाव) अनति (थोड़ा), अ-परस (जिसे किसी ने न छुआ हो):अपरस (एकचर्मरोग), भू-तत्त्व (पृथ्वी-तत्व) भूतत्त्व (भूत होने का भाव) आदि समस्त पदों की भी यही स्थिति है। ये सभी युग्म वर्तनी और अर्थ दोनों दृष्टियों से भिन्न-भिन्न शब्द हैं।

कठिन संधियों से बचने के लिए भी हाइफ़न का प्रयोग किया जा सकता है। जैसे-दवि-अक्षर (दव्यक्षर), दवि-अर्थक (दव्यअर्थक) आदि।

अव्यय

'तक', 'साथ', आदि अव्यय सदा पृथक् लिखे जाएँ। जैसे: यहाँ तक, आपके साथ।

आह, ओह, अहा, ऐ, ही, तो, सो, भी, न, जब, तब, कब, यहाँ वहाँ, कहाँ, सदा, क्या, श्री, जी, तक, भर, मात्र, साथ, कि, किंतु, मगर, लेकिन, चाहे या अथवा, तथा, यथा, और आदि, अनेक प्रकार के भावों का बोध कराने वाले अव्यय हैं।

कुछ अव्ययों के आगे कारक चिह्न भी आते हैं। जैसे-अब से, तब से, यहाँ से, वहाँ से, सदा से, आदि। नियम के अनुसार अव्यय सदा पृथक् लिखे जाने चाहिए। जैसे आप ही के लिए, मुझ तक को, आपके साथ, गज़ भरकपड़ा, देशभर, रातभर, दिनभर, वह इतना भर कर दे, मुझे जाने तो दो, काम भी नहीं बना, पचास रुपए मात्र आदि।

सम्मानार्थक 'श्री' और 'जी' अव्यय भी पृथक् लिखे जाएँ। जैसे:श्रीराम, कन्हैयालाल जी, महात्मा जी आदि। (यदि श्री, जी आदि व्यक्तिवाचक संज्ञा के ही भाग हों तो मिलाकर लिखे जाएँ। जैसे: श्रीराम, रामजी लाल, सोमयाजी आदि)

समस्त पदों में प्रति, मात्र, यथा आदि अव्यय जोड़कर लिखे जाएँ (यानी पृथक् नहीं लिखे जाएँ) जैसे प्रतिदिन, प्रतिशत, मानवमात्र, निमित्तमात्र, यथासमय, यथोचित आदि। यह सर्वविदित नियम है कि समास होने पर समस्त पद एक माना जाता है। अत: उसे विभक्त रूप में न लिखकर एक साथ लिखना ही संगत है। 'दस रुपए मात्र' 'मात्र दो व्यक्ति' में पदबंध की रचना है। यहाँ मात्र अलग से लिखा जाए (यानी मिलाकर नहीं लिखें)

अनुस्वर (ं), चंद्रबिन्दु (ँ)

अनुस्वार व्यंजन है और अनुनासिकता स्वर का नासिक्य विकार। हिन्दी में ये दोनों अर्थभेदक भी हैं। अत: हिन्दी में अनुसार (.) और अनुनासिकता चिह्न () दोनों ही प्रचलित रहेंगे। अनुस्वार

संस्कृत शब्दों का अनुस्वार अन्य वर्गीय वर्णों से पहले यथावत् रहेगा। जैसे संयोग, संरक्षण, संलग्न, संवाद, अंश, कंस, आदि।

संयुक्त व्यंजन के रूप में जहाँ पंचम वर्ण के बाद सवर्गीय शेष चार वर्णों में से कोई वर्ण हो तो एकरुपता और मुद्रण/लेखन की सुविधा के लिए अनुस्वार का ही प्रयोग करना चाहिए। जैसे पंकज, गंगा, चंचल, कंजूस, कंठ, ठंडा,संत, संध्या, मंदिर, संपादक आदि (कण्ठ, ठण्डा, संत, मन्दिर, सन्ध्या, सम्पादक, सम्बन्ध, वाले रूप नहीं) कोष्ठक में रखे हुए रूप संस्कृत के उदधरणों में ही मान्य होंगे। हिन्दी में बिंदी (अनुस्वार) का प्रयोग करना ही उचित होगा।

यदि पंचमाक्षर के बाद किसी अन्य वर्ग का कोई वर्ण आए तो पंचमाक्षर अनुस्वार के रूप में परिवर्तित नहीं होगा। जैसे वाड़मय,अन्य, चिन्मय, उन्मुख, आदि (वांमय, अंय, चिंमय, उंमुख आदि रूप ग्राहय नहीं होंगे)

पंचम वर्ण यदि दवित्त्व रूप में (दुबारा) आय तो पंचम वर्ण अनुस्वार में परिवर्तित नहीं होगा। जैसे- अन्न, सम्मेलन, सम्मति आदि (अंत, संमेलन, संमति रूप ग्राहय नहीं होंगे)।

अंग्रेज़ी, उर्दू से गृहीत शब्दों में आधे वर्ण या अनुस्वार के भ्रम को दूर करने के लिए नासिक्य व्यंजन को पूरा लिखना अच्छा रहेगा। जैसे लिमका, तनखाह, तिनका, तमगा, कमसिन आदि।

संस्कृत के कुछ तत्सम शब्दों के अंत में अनुस्वार का प्रयोग म् का सूचक है। जैसे- अहं (अहम्), एवं (एवम्), शिवं (शिवम्),

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