(ग):
(घ)
1. निम्नलि
1. प्री
3. सब प्राणियों के मत्तमनोमयूर अहा नचा रहा।
(क) रूपक
(ख) मानवीरकण
(ग) अनुप्रास
(घ) श्लेष
4. पुलक प्रकट करती है धरती हरित तृणों की नोकों से,
मानो झूम रहे हों तरु भी मंद पवन के झोंकों से।
(क) अनुप्रास
(ख) उत्प्रेक्षा
(ग) उपमा
(घ) मानवीकरण
5. मेघमय आसमान से उतर रही,
संध्या सुंदरी परी-सी धीरे-धीरे।
(क) मानवीकरण
(ख) उपमा
(ग) यमक
(घ) अनुप्रास
5. नि
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ग):
(घ)
1. निम्नलि
1. प्री
3. सब प्राणियों के मत्तमनोमयूर अहा नचा रहा।
(क) रूपक
(ख) मानवीरकण
(ग) अनुप्रास
(घ) श्लेष
4. पुलक प्रकट करती है धरती हरित तृणों की नोकों से,
मानो झूम रहे हों तरु भी मंद पवन के झोंकों से।
(क) अनुप्रास
(ख) उत्प्रेक्षा
(ग) उपमा
(घ) मानवीकरण
5. मेघमय आसमान से उतर रही,
संध्या सुंदरी परी-सी धीरे-धीरे।
(क) मानवीकरण
(ख) उपमा
(ग) यमक
(घ) अनुप्रास
5. नि
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