Hindi, asked by nida2007, 5 months ago

गुहे पाप्त
हमारे यहाँ पान करते हुए-​

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Answered by yashashwini21
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Answer:

साहित्य की गति का ऊपर जो संक्षिप्त उल्लेख हुआ, उससे रीतिकाल की सामान्य प्रवृत्ति का पता चल सकता है। अब इस काल के मुख्य मुख्य कवियों का विवरण दिया जाता है।

1. चिंतामणि त्रिपाठी ये तिकवाँपुर (जिला-कानपुर) के रहनेवाले और चार भाई थे,चिंतामणि, भूषण, मतिराम और जटाशंकर। चारों कवि थे, जिनमें प्रथम तीन तो हिन्दी साहित्य में बहुत यशस्वी हुए। इनके पिता का नाम रत्नाकर त्रिपाठी था। कुछ दिन से यह विवाद उठाया गया है कि भूषण न तो चिंतामणि और मतिराम के भाई थे, न शिवाजी के दरबार में थे। पर इतनी प्रसिद्ध बात का जब तक पर्याप्त विरुद्ध प्रमाण न मिले तब तक वह अस्वीकार नहीं की जा सकती। चिंतामणि का जन्मकाल संवत् 1666 के लगभग और कविताकाल संवत् 1700 के आसपास ठहरता है। इनका 'कविकुलकल्पतरु' नामक ग्रंथ संवत् 1707 का लिखा है। इनके संबंध में शिवसिंहसरोज में लिखा है कि 'ये बहुत दिन तक नागपुर में सूर्यवंशी भोसला मकरंदशाह के यहाँ रहे और उन्हीं के नाम पर 'छंद विचार' नामक पिंगल का बहुत भारी ग्रंथ बनाया और 'काव्य विवेक', 'कविकुलकल्पतरु', 'काव्यप्रकाश', 'रामायण' ये पाँच ग्रंथ इनके बनाए हुए हमारे पुस्तकालय में मौजूद हैं। इनकी बनाई रामायण कवित्त और अन्य नाना छंदों में बहुत अपूर्व है। बाबू रुद्रसाहि सोलंकी, शाहजहाँ बादशाह और जैनदीं अहमद ने इनको बहुत दान दिए हैं। इन्होंने अपने ग्रंथ में कहीं कहीं अपना नाम मणिमाल भी कहा है।'

ऊपर के विवरण से स्पष्ट है कि चिंतामणि ने काव्य के सब अंगों पर ग्रंथ लिखे। इनकी भाषा ललित और सानुप्रास होती थी। अवध के पिछले कवियों की भाषा देखते हुए इनकी ब्रजभाषा विशुद्ध दिखाई पड़ती है। विषय वर्णन की प्रणाली भी मनोहर है। ये वास्तव में एक उत्कृष्ट कवि थे। रचना के कुछ नमूने देखिए,

येई उधारत हैं तिन्हैं जे परे मोह महोदधि के जल फेरे।

जे इनको पल ध्यान धारैं मन, ते न परैं कबहूँ जम घेरे

राजै रमा रमनी उपधान अभै बरदान रहैं जन नेरे।

हैं बलभार उदंड भरे हरि के भुजदंड सहायक मेरे

इक आजु मैं कुंदन बेलि लखी मनिमंदिर की रुचिवृंद भरैं।

कुरविंद के पल्लव इंदु तहाँ अरविंदन तें मकरंद झरैं

उत बुंदन के मुकतागन ह्वै फल सुंदर द्वै पर आनि परै।

लखि यों दुति कंद अनंद कला नँदनंद सिलाद्रव रूप धारैं

ऑंखिन मुँदिबे के मिस आनि अचानक पीठि उरोज लगावै।

कैहूँ कहूँ मुसकाय चितै अंगराय अनूपम अंग दिखावै

नाह छुई छल सो छतियाँ हँसि भौंह चढ़ाय अनंद बढ़ावै।

जोबन के मद मत्ता तिया हित सों पति को नित चित्त चुरावै

2. बेनी ये असनी के बंदीजन थे और संवत् 1700 के आसपास विद्यमान थे। इनका कोई ग्रंथ नहीं मिलता पर फुटकल कवित्त बहुत से सुने जाते हैं जिनसे यह अनुमान होता है कि इन्होंने नख शिख और षट् ऋतु पर पुस्तकें लिखी होंगी। कविता इनकी साधारणत: अच्छी होती थी। भाषा चलती होने पर भी अनुप्रासयुक्त होती थी। दो उदाहरण नीचे दिए जाते हैं,

छहरैं सिर पै छवि मोरपखा

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