गृहकार्य दिये गये शीर्षकों पर 100-120 शब्दों में लघुकथा लिखिए!
1. लालच बुरी बला
2. परोपकार
Answers
Answer:
लालच बुरी बला है
एक पिता अपने दोनों बेटों से बहुत प्यार करते थे। यह सोच कि शहर चले जाएँ तो दोनों बेटों का भविष्य उज्जवल हो जाएगा, उन्होंने अपना पुश्तेनी घर बेच दिया। गांव में चोरियाँ बहुत हो रही थी इस लिए वो सारा पैसा उन्होंने एक खेत में गाड़ दिया। घर पहुँच कर घर बेचने की बात दोनों बेटों को बताई और यह भी बताया कि घर का नया मालिक एक दो दिन में यहाँ रहने आ जाएगा। इस लिए तैयारी करो शहर चलने की।
घर बिकने की बात सुन दोनों बेटों के मन में खोट आ गया। दोनों सोचने लगे की क्यों न मैं ही सारा पैसा हड़प लूँ। तरकीब सोचते हुए दोनों अपने पिता के पास गए और पूछा ” पर पैसा तो आप लाए नहीं।” पिता ने उत्तर दिया ” अरे, सारे पैसे मेरे पास हैं, तुम दोनों चिंता मत करो।”
रात को बड़ा बेटा उठा और सोते हुए पिता के सामान की तलाशी लेने लगा। तभी छोटा बेटा भी वहाँ पैसा ढूँढ़ते हुए पहुँच गया। एक दूसरे को देख दोनों घबरा गए। तब फुसफुसाते हुए दोनों ने तय किया कि इस बूढ़े पिता को साथ ले जा कर क्या करेंगे। क्यों न हम दोनों मिल कर पैसा ढूंढे। जब पैसा मिल जाएगा तो उसका बराबर बँटवारा कर शहर भाग जाएंगे।
उन्हें पता ही नहीं चला, पिता की नींद खुल गयी थी और वो उनकी सारी बातें सुन रहे थे।
अपनी पत्नी की मौत के बाद इतने प्यार से पाला था इन दोनों बेटों को और आज वही उसे धोखा दे रहे हैं।
अगले दिन उन्होंने सारा पैसा जमीन से निकाला और एक वृद्ध आश्रम को दान कर दिया। वो अपने बेटों की घृणित सोच से इतने दुखी हुए की उन्होंने फ़ौरन घर छोड़ दिया और साधू का वेश धारण कर गाँव से हमेशा के लिए चले गए।
दूसरे दिन नया मकान मालिक आया और उसने दोनों बेटों को घर से निकाल दिया।
अब दोनों के पास ना पिता था, ना घर था, और ना ही पैसा।
देखा आपने, लालच की वजह से दोनों के हाथ से पैसा भी गया और पिता का प्यार भी। तभी कहते हैं ” लालच बुरी बला है “
Answer:
एक बार एक लालची किसान से एक जमीनदार ने कहा कि वह दिन मेँ जितनी जमीन पर चलेगा, वह जमीन उसके नाम पर कर दी जाएगी, लेकिन जमीनदार ने शर्त रखी कि वह सुरज डूबनेँ तक शुरू की जगह पर वापस लौट आए।
ज्यादा से ज्यादा जमीन हासिल करने की लालच मेँ वह किसान दुसरे दिन सूरज निकलने से पहले ही निकल पड़ा। वह काफी तेजी से चलता हूआ आगे बढ़ रहा था क्योँकि लालच मेँ आकर वह ज्यादा से ज्यादा जमीन हासिल करना चाहता था।
थकने के बावजूद भी वह सारी दोपहर चलता रहा, क्योँ वह जिँदगी मेँ दौलत कमाने के लिए हासिल हुए उस मौके को गँवाना नहीँ चाहता था।
दिन ढलते वक्त उसे वह शर्त याद आई कि उसे सूरज डूबने से पहले शुरूआत की जगह पर पहुँचना है।
अपनी लालच की वजह से ही वह उस जगह से काफी दूर निकल आया था। वह वापस लौट पड़ा।
सूरज डूबने का वक्त ज्योँ-ज्योँ करीब आता जा रहा था, वह उतनी ही तेजी से दौड़ता जा रहा था। वह लालची किसान बुरी तरह से हाँफने लगा, फिर भी वह बर्दाश्त से अधिक तेजी से दौड़ता रहा।
नतीजा यह हूआ कि सूरज डूबते-डूबते वह शुरूआत वाली जगह पर पहूँच तो गया, पर उसका दम निकल गया, और वह मर गया।
उसको दफना दिया गया, और उसे दफन करने के लिये जमीन के बस एक छोटे से टुकड़े की ही जरूरत पड़ी।
2=बहुत समय पहले की बात है एक विख्यात ऋषि गुरुकुल में बालकों को शिक्षा प्रदान किया करते थे. उनके गुरुकुल में बड़े-बड़े रजा महाराजाओं के पुत्रों से लेकर साधारण परिवार के लड़के भी पढ़ा करते थे।वर्षों से शिक्षा प्राप्त कर रहे शिष्यों की शिक्षा आज पूर्ण हो रही थी और सभी बड़े उत्साह के साथ अपने अपने घरों को लौटने की तैयारी कर रहे थे कि तभी ऋषिवर की तेज आवाज सभी के कानो में पड़ी ,आप सभी मैदान में एकत्रित हो जाएं।”
आदेश सुनते ही शिष्यों ने ऐसा ही किया।
ऋषिवर बोले , “प्रिय शिष्यों , आज इस गुरुकुल में आपका अंतिम दिन है. मैं चाहता हूँ कि यहाँ से प्रस्थान करने से पहले आप सभी एक दौड़ में हिस्सा लें.
यह एक बाधा दौड़ होगी और इसमें आपको कहीं कूदना तो कहीं पानी में दौड़ना होगा और इसके आखिरी हिस्से में आपको एक अँधेरी सुरंग से भी गुजरना पड़ेगा.”Hindi News Mukhya Samachar Taja Khabar
तो क्या आप सब तैयार हैं?”
” हाँ , हम तैयार हैं ”, शिष्य एक स्वर में बोले.
दौड़ शुरू हुई.
सभी तेजी से भागने लगे. वे तमाम बाधाओं को पार करते हुए अंत में सुरंग के पास पहुंचे. वहाँ बहुत अँधेरा था और उसमे जगह – जगह नुकीले पत्थर भी पड़े थे जिनके चुभने पर असहनीय पीड़ा का अनुभव होता था.
सभी असमंजस में पड़ गए , जहाँ अभी तक दौड़ में सभी एक सामान बर्ताव कर रहे थे वहीँ अब सभी अलग -अलग व्यवहार करने लगे ; खैर , सभी ने ऐसे-तैसे दौड़ ख़त्म की और ऋषिवर के समक्ष एकत्रित हुए।
“पुत्रों ! मैं देख रहा हूँ कि कुछ लोगों ने दौड़ बहुत जल्दी पूरी कर ली और कुछ ने बहुत अधिक समय लिया , भला ऐसा क्यों ?”, ऋषिवर ने प्रश्न किया।
यह सुनकर एक शिष्य बोला , “ गुरु जी , हम सभी लगभग साथ –साथ ही दौड़ रहे थे पर सुरंग में पहुचते ही स्थिति बदल गयी …कोई दुसरे को धक्का देकर आगे निकलने में लगा हुआ था तो कोई संभल -संभल कर आगे बढ़ रहा था …और कुछ तो ऐसे भी थे जो पैरों में चुभ रहे पत्थरों को उठा -उठा कर अपनी जेब में रख ले रहे थे ताकि बाद में आने वाले लोगों को पीड़ा ना सहनी पड़े…. इसलिए सब ने अलग-अलग समय में दौड़ पूरी की.”
“ठीक है ! जिन लोगों ने पत्थर उठाये हैं वे आगे आएं और मुझे वो पत्थर दिखाएँ”, ऋषिवर ने आदेश दिया.
आदेश सुनते ही कुछ शिष्य सामने आये और पत्थर निकालने लगे. पर ये क्या जिन्हे वे पत्थर समझ रहे थे दरअसल वे बहुमूल्य हीरे थे. सभी आश्चर्य में पड़ गए और ऋषिवर की तरफ देखने लगे.
“मैं जानता हूँ आप लोग इन हीरों के देखकर आश्चर्य में पड़ गए हैं.” ऋषिवर बोले।
“दरअसल इन्हे मैंने ही उस सुरंग में डाला था , और यह दूसरों के विषय में सोचने वालों शिष्यों को मेरा इनाम है।”