गृहस्थ आश्रम को सबसे ऊंचा और श्रेष्ठ क्यों माना जाता है
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धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष।
*ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास।
*धर्म से मोक्ष और अर्थ से काम साध्य माना गया है। ब्रह्मचर्य और गृहस्थ जीवन में धर्म, अर्थ और काम का महत्व है। वानप्रस्थ और संन्यास में धर्म प्रचार तथा मोक्ष का महत्व माना गया है।
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पुष्ट शरीर, बलिष्ठ मन, संस्कृत बुद्धि एवं प्रबुद्ध प्रज्ञा लेकर ही विद्यार्थी ग्रहस्थ जीवन में प्रवेश करता है। विवाह कर वह सामाजिक कर्तव्य निभाता है। संतानोत्पत्ति कर पितृऋण चुकता करता है। यही पितृ यज्ञ भी है। पाँच महायज्ञों का उपयुक्त आसन भी यही है।
सनातन धर्म में पूर्ण उम्र के सौ वर्ष माने हैं। इस मान से जीवन को चार भाग में विभक्त किया गया है। उम्र के प्रथम 25 वर्ष को शरीर, मन और बुद्धि के विकास के लिए निर्धारित किया है। इस काल में ब्रह्मचर्य आश्रम में रहकर धर्म, अर्थ और काम की शिक्षा ली जाती है। दूसरा गृहस्थ आश्रम माना गया है। गृहस्थ काल में व्यक्ति सभी तरह के भोग को भोगकर परिपक्व हो जाता है।
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