(ग) इतना बड़ा उपहास-धर्म के नाम पर स्त्री की आज्ञाकारिता की यह
पैशाचिक परीक्षा, मुझसे बलपूर्वक ली गई है। पुरोहित! तुमने जो
मेरा राक्षस-विवाह कराया है,उसका उत्सव भी कितना सुन्दर है।
यह जनसंहार देखो, अभी उस प्रकोष्ठ में रक्त से सनी हुई शकराज
की लोथ पड़ी होगी।
(घ) ब्राह्मण केवल धर्म से भयभीत है, अन्य किसी भी शक्ति को वह
तुच्छ समझता है। तुम्हारे बधिक मुझे धार्मिक सत्य कहने से रोक
नहीं सकते।
rar
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