Sociology, asked by amanpand8957, 3 months ago

गुजरात का वह नगर जहाँ से डांडी मार्च स्थित है।

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Answered by bhartirathore299
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सन् 1930 के मार्च महीने की 12 तारीख को मोहनदास करमचंद गांधी ने 80 लोगों के साथ अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से गुजरात के समुद्रतट पर बसे दांडी गांव तक पदयात्रा शुरू की थी. दांडी तक की 241 मील की दूरी तय करने में उन्हें 24 दिन लगे और इस यात्रा में पूरे रास्ते हजारों लोग जुड़ते चले गए

Answered by Itz2minback
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दांडी मार्च-पत्थरों पर उत्कीर्ण एक पूरा स्मारक

ऐतिहासिक 'नमक सत्याग्रह' के लिए सत्याग्रहियों के साथ गांधीजी की दांडी तक की यात्रा को मूर्तियों, भित्ति-चित्रों और अन्य कलाकृतियों के माध्यम से पुनर्जीवित करता एक स्मारक

सन् 1930 के मार्च महीने की 12 तारीख को मोहनदास करमचंद गांधी ने 80 लोगों के साथ अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से गुजरात के समुद्रतट पर बसे दांडी गांव तक पदयात्रा शुरू की थी. दांडी तक की 241 मील की दूरी तय करने में उन्हें 24 दिन लगे और इस यात्रा में पूरे रास्ते हजारों लोग जुड़ते चले गए. 90 साल पहले हुई उस ऐतिहासिक यात्रा के केंद्र पर उन स्मृतियों को सहेजने के लिए एक स्मारक बनाया गया है. राष्ट्रीय नमक सत्याग्रह स्मारक (नेशनल सॉल्ट सत्याग्रह मेमोरियल) में गांधीजी की अगुआई में मूलरूप से यात्रा की शुरुआत करने वाले 80 दांडी यात्रियों की सिलिकॉन कांस्य प्रतिमाओं, यात्रा के 24 दिनों की संख्या के प्रतीक के रूप में यात्रा की कथाएं कहते 24 भित्तिचित्रों और कई अन्य गतिविधियों से उस महान आंदोलन की कथा को जीवंत करने के सार्थक प्रयास हुए हैं.

यह स्मारक भारत के भीतर नमक बनाने और उसकी बिक्री पर ब्रिटिश सरकार की मनमानी कर वसूली के खिलाफ सविनय अवज्ञा आंदोलन को गरिमामय तरीके से याद करता है. 6 अप्रैल, 1930 को गांधी ने कच्छ भूमि में समुद्रतल से एक मुट्ठी नमक उठाया था. इस मुट्ठीभर नमक से गांधी ने अंग्रेजी हुकूमत को जितना सशक्त संदेश दिया था, उतना मजबूत संदेश शायद शब्दों से नहीं दिया जा सकता था.

नमक सत्याग्रह के रूप में भी जाने जाते रहे दांडी मार्च का उद्देश्य न केवल नमक कानूनों को धता बताना था बल्कि स्वराज प्राप्ति के बड़े लक्ष्य के लिए लोगों को एकजुट करना था. यहां पत्थर की दीवार पर सोमलाल प्रागजीभाई पटेल, आनंद हिंगोरानी और हरिभाई मोहानी के अलावा और भी बहुत-से ऐसे दांडी यात्रियों के नाम खुदे हैं जो गांधी के साथ इस यात्रा के आरंभ से अंत तक बने रहे. प्रत्येक मूर्ति पर मूर्तिकार का नाम भी अंकित है. इस समूह में सबसे युवा 16 वर्षीय विपुल ठक्कर का नाम देखना बड़ा मोहक लगता है.

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